अपने ‘मन’ को काबू में कैसे रखें?अपने ‘मन’ को

किसी राजा के पास एक बकरा था! एक बार उसने एलान किया कि ~जो कोई इस बकरे को जंगल में चराकर तृप्त करेगा,nमैं उसे आधा राज्य दे दूँगा! लेकिन बकरे का पेट पूरा भरा है या नहीं – *इसकी परीक्षा मैं खुद करूँगा!

इस एलान को सुनकर एक आदमी राजा के पास आकर कहने लगा कि – बकरा चराना कोई बड़ी बात नहीं है! वह बकरे को लेकर जंगल में गया और सारा दिन … उसे घास चराता रहा! शाम को उसने सोचा कि ~ सारा दिन इसने इतनी घास खाई है; *अब तो इसका पेट भर गया होगा! अब इसको राजा के पास ले चलूँ!

बकरे के साथ वह राजा के पास गया! राजा ने थोड़ी सी हरी घास बकरे के सामने रखी, तो …बकरा उसे खाने लगा!
इस पर राजा ने उस आदमी से कहा ~ तूने उसे पेट भर खिलाया ही नहीं; वर्ना वह घास क्यों खाने लगता?
❓???❓

इसी तरह बहुत लोगों ने बकरे का पेट भरने का प्रयत्न किया, किंतु ज्योंही दरबार में राजा के सामने घास डाली जाती, तत्काल वह फिर से घास खाने लगता!

एक विद्वान् ब्राह्मण ने सोचा ~ इस एलान का कोई तो रहस्य है! मैं युक्ति से काम लूँगा! वह बकरे को चराने के लिए ले गया! वहाँ जब भी बकरा घास खाने के लिए मुँह बढ़ाता- वह उसे लकड़ी से मारता!

सारे दिन में ऐसा कई बार हुआ! अंत में बकरे ने सोचा कि- यदि मैं घास खाने का प्रयत्न करूँगा तो मार खानी पड़ेगी!

शाम को वह ब्राह्मण बकरे को लेकर राज दरबार में लौटा बकरे को तो उसने घास खिलाई ही नहीं थी, फिर भी राजा से कहा ~ मैंने इसको भरपेट खिलाया है; अब यह बिलकुल घास नहीं खायेगा! लो कर लीजिये परीक्षा!

राजा ने घास डाली! लेकिन बकरे ने उसे खाना तो क्या ~ देखा और सूँघा तक नहीं! क्योंकि बकरे के मन में यह बात बैठ गयी थी कि अगर घास खाऊँगा, तो मार पड़ेगी! अत: उसने घास नहीं खाई!.
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इसी तरह हमारा ‘मन’ भी यही बकरा है- उसे घास चराने के लिये ले जाने वाला ब्राह्मण हमारी ‘आत्मा’ है और राजा ‘परमात्मा’ है!

मन को मारो नहीं ~ मन पर अंकुश रखो! मन सुधरेगा, तो जीवन भी सुधरेगा!
अतः विवेक रूपी और अभ्यास रूपी लकड़ी से इस मन की ताड़ना करो और अपना सम्बन्ध उस अविनाशी आत्मा से जोड़ो!
कहा भी है कि –
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।
बन्धाय विषयासंगो मुक्त्यै निर्विषयं मनः ॥
~ अमृतबिन्दु उपनिषद्
अर्थात् :
“मन ही मानव के बंधन और मोक्षका कारण है। इन्द्रियविषयासक्त मन बंधन का कारण है और विषयोँ से विरक्त मन मुक्ति का कारण है ।”




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