एक जिज्ञासु किसी सुखी पुरुष की तलाश में निकला।

एक जिज्ञासु किसी सुखी पुरुष की तलाश में निकला।सबसे पहले वह एक निर्धन किसान के पास पहुंँचा और उसने किसान से पूछा- “किसान भाई! आप तो सुखी होंगे?

किसान ने कहा- “भाई साहब, मैं तो निर्धन हूंँ, भला मैं कैसे सुखी हो सकता हूंँ। गांँव का धन सम्पन्न व्यक्ति सुखी है आप उसके पास जाइये।
तब जिज्ञासु धनाढ्य व्यक्ति के पास पहुंँचा। उसने धनाढ्य व्यक्ति से पूछा- महानुभव आप तो सुखी होंगे?

उसने कहा- “प्यारे भाई,भला मैं कैसे सुखी हो सकता हूंँ क्योंकि मेरे पास तो धन वैभव है, किन्तु उसकी सुरक्षा का कोई समुचित प्रबन्ध नहीं है। दिन-रात चिन्ता और दुख है कि कहीं मेरे धन- वैभव को लुटेरा ले ना जायें।

तब जिज्ञासु ने पूछा- “फिर सुखी कौन होगा?

उसने कहा- आप राजा के पास जाइये,वह सुखी होगा।
तब जिज्ञासु राजा के पास पहुंँचा तथा नमस्कार कर पूछा- “राजन!आप तो अवश्य सुखी होंगे?

राजा ने कहा- ये भाग्य की कैसी विडम्बना है कि प्रभु ने बहुतों को तो भोग-पदार्थ दिए ही नहीं, तो वह उनके अभाव में दुखी है, किन्तु मेरे पास सब कुछ रहते हुए भी मैं उसका उपभोग नहीं कर सकता, क्योंकि डाक्टरों ने बताया है कि आपको बहुत सारा रोग है। जिसके लिए आपको इन सारे भोग पदार्थ को त्यागना होगा, नहीं तो बीमारी और भी बढ़ जाएगी। इसलिए मैं भी बहुत दुखी हूंँ।

राजा ने फिर कहा- इस धरातल में कोई भी व्यक्ति सुखी नहीं होगा अगर आप सुखी आत्मा की खोज में है तो आप देवराज इन्द्र के पास जाइये।
जिज्ञासु इन्द्र के पास भी पहुंँचा तथा उसने अपने पुराना प्रश्न उसके पास भी दोहराया।

देवराज इन्द्र ने कहा- “भाई मेरे,मैं भी चिन्तित और दुखी हूंँ।
जिज्ञासु ने विस्मिता होकर पूछा- “आप और दुखी!क्यों कैसे?
इन्द्र ने कहा- “मुझे एक ही चिंन्ता दिन-रात सताती रहती है कि कहीं कोई भजन-अभ्यासी साधु भक्त महात्मा भजन-सुमिरण कर मेरे इन्द्रासन को न छीन ले।अतः मैं भी दुखी हूंँ।

जिज्ञासु ने पूछा- जब इतनी भोग सामग्री पाकर आप भी दुखी हैं तो इस संसार में सुखी कौन होगा?
इन्द्र ने कहा- “आप ब्रह्मा जी के पास जाइये, शायद वह सुखी हों।
जिज्ञासु ब्रह्मा जी के पास पहुंँचा तथा उन्हें प्रणाम कर पूछा- पितामह!आप तो सुखी और निश्चिंत होंगे?

ब्रह्मा जी ने कहा- “भाई! मैंने सारे सृष्टि की रचना की है और यह विधान बनाया गया है कि प्रत्येक पुत्र का यह कर्तव्य है कि वह अपने पिता का आज्ञा की पालन करें, किन्तु मेरी कोई सन्तान मेरी कोई आज्ञा नहीं मानती।अतः मैं भी दुखी हूंँ।आप भगवान शंँकर के पास जाइये,वह सुखी होंगे।

जिज्ञासु भगवान शंँकर के चरणों में उपस्थित हुआ तथा प्रणाम कर पूछा – भगवन! “आप तो सुखी होंगे”।
शंँकर जी ने कहा- “वत्स! मेरे घर में भी बड़ी समस्या है मेरा पुत्र गणेश जब मेरे पास चूहे की सवारी पर आता है तो मेरी गले का नाग (सर्प) उसके चूहे को खाने भागता है और उसका चूहा बिल में घुस जाता है l हमारे परिवार के वाहनों की प्रकृति और हमारे रहन-सहन का तरीका भी अलग-अलग है!

अपनी सवारी की बिना गणेश दुखी हो जाता है और जब पुत्र दुखी हो जाता है तब पिता का दुखी होना स्वभाविक ही है। और जब मेरा पुत्र कार्तिकेय मुझसे मिलने आता है तो अपनी सवारी मोर पर बैठकर आता है। उसका मोर मेरे गले के नाग (सर्प) को खाने बढ़ता है और मेरे गले का नाग (सर्प) भाग कर विल में घुस जाता है।तब अपने गले की माला नाग (सर्प) के बिना मैं दुखी हो जाता हूंँ।

और जब पिता दुखी हो जाता है तो स्वभावतः पुत्र भी दुखी हो जाता है। मेरी कुटिया एक है, झोपड़ी भी छोटी है, मेरा वाहन बैल है और मेरी अर्धांगिनी पार्वती का वाहन शेर है।अब उस छोटी सी कुटिया में बैल और शेर को कैसे रखा जाये, क्योंकि शेर का आहार बैल है।पार्वती का शेर दहाड़ता है और मेरा बैल खूटा उखाड़ कर भाग जाता है।अतः हमारे घर में भी बड़ी समस्या है l

हांँ इन समस्याओं से परेशान होकर मैं जब भगवान का ध्यान करता हूंँ तो हमें बड़ी शान्ति मिलती है और मैं सुखी हो जाता हूंँ। तुम भगवान विष्णु के पास जाओ, “मात्र वही सुखी स्वरुप है”।

जिज्ञासु-भगवान विष्णु के पास पहुंँचा और श्री चरणों में दन्डवत प्रणाम कर उनसे निवेदन किया- प्रभु! मैं बहुत भटकता हुआ आपके पास यह जानने के लिए आया हूंँ कि आप तो सुखी होंगें।

जिज्ञासु को समझाते हुए भगवान कहने लगे- “भाई! मैं भी तो भक्तों के दुख से सदा दुखी रहता हूंँ। न जाने कब कौन दुष्ट मेरे किसी भक्त को दुखी कर दे!
यदि तुम सुखी पुरुष की तलाश में हो तो सुनो, इस संसार में केवल मेरा भक्त सुखी है जिसने मेरे नाम को अपने जीवन का आधार बना लिया है।” बाकी सारा संसार ही दुखी है”।
इसलिए किसी संतों ने कहा है:–

निर्धन कहे धनवान सुखी,
धनवान कहे सुखी राजा हमारा।

राजा कहे महाराजा सुखी,
महाराजा कहे सुखी इन्द्र हमारा।।

इन्द्र कहे ब्रह्मा जी सुखी,
ब्रह्मा जी कहे शिव शंँकर प्यारा।

शंँकर कहे विष्णु जी सुखी,
विष्णु जी कहे सुखी भक्त हमारा।।

“भक्त सुखी जो नाम भजे,
और बाकी दुखिया सब संसार।

नानक दुखिया सब संसारा, सुखिया सोई जिन नाम आधारा।

सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।

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