एक महात्मा जी थे। जब सत्संग के लिए बाहर जाया करते थे। तब उन्हे एक बूढ़ा घर के सामने बैठा हुआ मिलता था।

एक महात्मा जी थे। जब सत्संग के लिए बाहर जाया करते थे। तब उन्हे एक बूढ़ा घर के सामने बैठा हुआ मिलता था।

एक दिन महात्मा जी ने उससे कहा कि भजन किया कर।

कहता है छोटे-छोटे बच्चे हैं जवान हो जाएं फिर करूंगा। जब बच्चे जवान हो गए तो महात्मा जी फिर मिले और कहा कि भजन कर।

वह कहने लगा इनकी शादियां हो जाएं फिर भजन करूंगा।

जब शादियां हो गई तो महात्मा जी ने कहा कि अब बता! कहता है पोतों का मुंह देखने की इच्छा पूरी कर लूं। जब पोते हो गए तो महात्मा जी फिर मिले और कहा कि अब तो भजन कर।

कहता है कि पोते छोटे-छोटे हैं जरा जवान हो जाए फिर भजन करूंगा।

जब पोते जवान हो गए तो महात्मा जी ने फिर पूछा- कहता है यह लापरवाह हैं रात को सो जाते हैं अगर मैं न जागूं तो चोरी हो जाए।

कुछ समय बाद महात्मा जी फिर गए तो वह बाबा ना मिला। पूछा कि बाबा कहां है पुत्र-पुत्रियों ने कहा कि जी वह तो गुजर गया।

उस बूढ़े का घर की दुधारू गाय से बड़ा प्यार था। गाय भैंसे पालता था। एक गाय से उसे बड़ा प्यार था।

जब मरा तो गाय के पेट में आया और बछड़ा बना।महात्मा जी ने अंतर्ध्यान हो कर देखा तो पता लगा कि वह बछड़े का जन्म पाकर जवान हुआ ।

उसे खूब हल में जोता बहुत चलाया आखिर वह बूढ़ा हो गया। जब उनके काम का न रहा तो उन्होंने उसे गाड़ीवान को बेच दिया।

उसने भी उसे 10-12 साल चलाया जब उसके भी काम कर रहा तो उसने उसे तेली के हवाले कर दिया जिसने उसे कई साल कोल्हू में जोता।

जब वहां भी निकम्मा हो गया तो उसने कसाई को दे दिया। कसाई ने मार कर उसका मांस बेच दिया और जो चमड़ा था वह नगाड़े वाले ले गए।

उन्होंने उसका नगाड़ा बना लिया अब उस पर खूब डंडे पड़ते हैं। यह देखकर महात्मा जी ने कहा-

“बैल बने हल में जुते ले गाड़ी में दीन,

तेली के कोल्हू रहे पुनि घेर कसाई लीन

मास कटा बोटी बिकी चमड़न मढ़ी नक्कार

कुछेक करम बाकी रहे तिस पर पड़ती मार”।

सो बात तो यह है कि मन अंदर नहीं जाने देता। यह हजारों छल करता है।
अगर आप उस का मुकाबला नहीं करते तो कसूर आपका है।
मन चाहे रोए चाहे पीटे मगर भजन मत छोड़ो।

इसका इलाज ही डंडा है यानी सख्ती है।

🙏🙏 सुप्रभात 🙏🙏




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