कर्म का फल

*कर्म का फल*

एक गांव था ! वह ऐसी जगह बसा था – जहाँ आने जाने के लिए एक मात्र साधन नाव थी, क्योंकि बीच में नदी पड़ती थी और कोई रास्ता भी नहीं था।

एक बार उस गाँव में महामारी फैल गई और बहुत सी मौते हो गयी, लगभग सभी लोग वहाँ से जा चुके थे।

अब कुछ ही गिने चुने लोग बचे थे और वो नाविक गाँव में बोलकर आ गया था कि *मैं इसके बाद नहीं आऊँगा जिसको चलना है वो आ जाये।*

सबसे पहले एक भिखारी आ गया और बोला *मेरे पास देने के लिए कुछ भी नहीं है, मुझे अपने साथ ले चलो, ईश्वर आपका भला करेगा!*

नाविक सज्जन पुरुष था। उसने कहा कि *यही रुको, यदि जगह बचेगी तो तुम्हें मैं ले जाऊँगा।*

धीरे -धीरे करके पूरी नाव भर गई सिर्फ एक ही जगह बची !

नाविक भिखारी को बोलने ही वाला था कि *एक आवाज आयी रुको मैं भी आ रहा हूँ।*

यह आवाज जमीदार की थी, जिसका धन-दौलत से लोभ और मोह देख कर उसका परिवार भी उसे छोड़कर जा चुका था।

अब सवाल यह था कि *किसे लिया जाए!*

जमीदार ने नाविक से कहा – *मेरे पास सोना चांदी है! मैं तुम्हें दे दूँगा और भिखारी ने हाथ जोड़कर कहा कि *भगवान के लिए मुझे ले चलो।*

नाविक समझ नहीं पा रहा था कि *क्या करूँ?* तो उसने फैसला नाव में बैठे सभी लोगों पर छोड़ दिया और वो सब आपस में चर्चा करने लगे।

इधर जमीदार सबको अपने धन का प्रलोभन देता रहा और उसने उस भिखारी को बोला – *ये सबकुछ तू ले ले! मैं तेरे हाथ पैर जोड़ता हूँ! मुझे जाने दे!*

तो भिखारी ने कहा, *मुझे भी अपनी जान बहुत प्यारी है अगर मेरी जिंदगी ही नहीं रहेगी तो मैं इस धन दौलत का क्या करूँगा? जान है तो जहान है!*

तो सभी ने मिलकर ये फैसला किया कि *ये जमीदार ने आज तक हमसे लूटा ही है! ब्याज पर ब्याज लगाकर हमारी जमीन अपने नाम कर ली!*
और माना कि *ये भिखारी हमसे हमेशा माँगता रहा पर उसके बदले में इसने हमें खूब दुआएं दी और इस तरह भिखारी को साथ में ले लिया गया!*

बस यही सही फैसला था!
*ईश्वर भी वही हमारे साथ हमारे कर्मों के हिसाब से ही फल देता है! जब अंत समय आता है, तो वो सारे कर्मों का लेखा-जोखा हमारे सामने रख देता हैं और फैसले उसी हिसाब से होते हैं फिर रोना गिड़गिगिड़ाना काम नहीं आता ! केवल शुभ कर्म ही साथ होते है।*

महापुरुष यही समझाते हैं कि *समय रहते चेत जाना चाहिय! जब तक स्वांस आ रही है और जा रही है तो यह जीवन है! इसलिय जीते जी अभ्यास करना चाहिय! अपने नेक कर्मों में इजाफ़ा करना है और सदा याद रखना है कि –
*मेरे दाता की दुकान में सब दुनिया का खाता!*
*जो जैसा कर्म करेगा वह वैसा ही फल पाता!!*




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