क्या है जीवन का लक्ष्य ?
कितना विचित्र है यह संसार!
यहाँ राजा सोचता है कि फकीर मजे में है और फकीर सोचता है राजा मजे में है।
दोनों की मनोस्थिति ऐसी है कि सच देख नहीं पा रहे हैं!
क्या ऐसा संभव है कि आप जहाँ है – वहीं आनंदमय हो जाएँ।
न फकीरी में पड़ें, न ही बादशाहत में। जो मिला है, उसे प्रसाद समझकर स्वीकार करें।
सुख आए तो, दुःख आए तो भी चुपचाप मुस्कुराकर साक्षी भाव से देखते रहें और जो परमात्मा दे उसे खुशी से स्वीकार कर लें!
सच यही है कि आपकी पात्रता को देखकर ही उसने आपको सब कुछ दिया है !
प्रायः यह देखने में आता है कि जिनके पास बहुत होता है वे भी अशांत या दुःखी दिखाई देते हैं और बहुत से लोग सीमित साधनों में भी गुजारा कर काफी खुश या सुखी दिखाई देते हैं।
यह बात सिद्ध करती है कि खुशी का आधार हमारी भौतिक वस्तुएं न होकर उनसे भी ज्यादा हमारे जीवन जीने का तरीका, सोचने या विचार करने का तरीका होता है।
इसलिए हमेशा अच्छा ही सोचें क्योंकि यही सोच ही हमारे कर्म का आधार है, बीज है।
इस संसार में न कोई सदा रहा है और न ही रह सकता है!
यह कटु सत्य है कि हम से पहले अनेक लोग यहाँ से जा चुके हैं और हमे भी एक दिन यह संसार छोड़कर चले जाना है!
जीवन-काल अल्प है जो हमे कुछ समय के लिये ही खास उद्देश्य की पूति॔ के लिये ही मिला है और सचमुच में हमारे पास समय बहुत कम है!
हम एक बार जन्म लेने के बाद कभी भी मृत्यु से भाग नहीं सकते और हम तो अपने जीवनकाल का अधिक भाग पहले से बिना किसी प्राप्ति के समाप्त भी कर चुके हैं और शेष जीवन तेजी से मौत की और बढ़ता जा रहा है!
यह हमारा अनमोल मनुष्य-जन्म व्यथ॔ ही संसार के कामों में बिता जा रहा है! आज हम अपना कीमती समय संसार के कामों में गँवाकर अपने खुद के साथ बहुत बड़ा अन्याय कर रहे हैं!
सोचने वाली बात है कि बिना लक्ष्य को प्राप्त किए यदि हमें जाना पड़े तो कैसा अनुभव होगा?.
इसलिए समय के सदगुरु समझाते हैं कि तुम्हारे लिए जीते जी स्वर्ग की अनुभूति संभव है! तुम खाली हाथ आए ज़रूर पर तुमको खाली हाथ संसार से जाने की जरुरत नहीं है!
जिन भाग्यशाली लोगों को सदगुरु का वह सानिध्य प्राप्त है वे अपने हर पल का आनन्द लेते रहें!
आपका जीवन आनंदमय बना रहे!
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