गेंहू के दाने

💐💐गेंहू के दाने💐💐

एक समय की बात है जब राजस्थान के एक छोटे से गाँव नयासर में अमरसेन नामक व्यक्ति रहता था। अमरसेन बड़ा होशियार था, उसके चार पुत्र थे जिनके विवाह हो चुके थे और सब अपना जीवन जैसे-तैसे निर्वाह कर रहे थे परन्तु समय के साथ-साथ अब अमरसेन वृद्ध हो चला था! पत्नी के स्वर्गवास के बाद उसने सोचा कि अब तक के संग्रहित धन और बची हुई संपत्ती का उत्तराधिकारी किसे बनाया जाये?

ये निर्णय लेने के लिए उसने चारो बेटों को उनकी पत्नियों के साथ बुलाया और एक-एक करके गेहूं के पाँच दाने दिए और कहा कि मै तीरथ पर जा रहा हूँ और चार साल बाद लौटूंगा और जो भी इन दानों की सही हिफाजत करके मुझे लौटाएगा तिजोरी की चाबियाँ और मेरी सारी संपत्ती उसे ही मिलेगी
इतना कहकर अमरसेन वहां से चला गया।

पहले बहु-बेटे ने सोचा, बुड्ढा सठिया गया है! चार साल तक कौन याद रखता है! हम तो बड़े हैं तो धन पर पहला हक़ हमारा ही है। ऐसा सोचकर उन्होंने गेहूं के दाने फेक दिये।

दूसरे ने सोचा कि संभालना तो मुश्किल है! यदि हम इन्हे खा लें तो शायद उनको अच्छा लगे और लौटने के बाद हमें आशीर्वाद दे दें और कहे की तुम्हारा मंगल इसी में छुपा था और सारी संपत्ती हमारी हो जाएगी यह सोचकर उन्होंने वो पाँच दानें खा लिये।

तीसरे ने सोचा कि हम रोज पूजा पाठ तो करते ही हैं और अपने मंदिर में जैसे ठाकुरजी को सँभालते हैं! वैसे ही ये गेहूं भी संभाल लेंगे और उनके आने के बाद लौटा देंगे।

चौथे बहु-बेटे ने समझदारी से सोचा और पाचों दानो को एक एक कर जमीन में बो दिया और देखते-देखते वे पौधे बड़े हो गये और कुछ गेहूं ऊग आये फिर उन्होंने उन्हें भी बो दिया इस तरह हर वर्ष गेहूं की बढ़ोतरी होती गई पाँच दानें पाँच बोरी, पच्चीस बोरी,और पचासों बोरियों में बदल गए।

चार साल बाद जब अमरसेन वापस आया तो सबकी कहानी सुनी और जब वो चौथे बहु-बेटों के पास गया तो बेटा बोला, ”पिताजी, आपने जो पांच दाने दिए थे अब वे गेंहूँ की पचास बोरियों में बदल चुके हैं! हमने उन्हें संभल कर गोदाम में रख दिया है, उनपर आप ही का हक़ है।”
यह देख अमरसेन ने फ़ौरन तिजोरी की चाबियाँ सबसे छोटे बहु-बेटे को सौंप दी और कहा, तुम ही लोग मेरी संपत्ति के असल हक़दार हो।

इस प्रसंग से हमें शिक्षा मिलती है कि मिली हुई जिम्मेदारी को अच्छी तरह से निभाना चाहिए और मौजूद संसाधनो, चाहे वो कितने कम ही क्यों न हों, उनका सही उपयोग करना चाहिए।

गेंहूँ के पांच दाने तो एक प्रतीक हैं, जो समझाते हैं कि कैसे छोटी से छोटी शुरुआत करके उसे एक बड़ा रूप दिया जा सकता है।

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