भगवान की कृपा

भगवान की कृपा

एक बार की बात है बहुत तेज बारिश हो रही थी। दो मटके(घड़े) बाहर रखे हुए थे। बारिश में दोनों भीग रहे थे। थोड़ी देर के बाद जब बारिश बंद हुई तो एक मटका भर गया और दूसरा खाली रह गया।

जो मटका खाली रह गया गया वो वर्षा से कहता है अरी वर्षा, तू पक्षपात (भेदभाव) करती है। तूने इसे भर दिया है लेकिन मुझे नहीं भरा।

तब बारिश कहती है – अरे मटके, तू ऐसा क्यों बोल रहा है? मैंने तुम दोनों मटको पर बराबर बारिश की है; लेकिन तू अपना मुंह तो देख। तेरा मुंह नीचे की ओर है।

क्योंकि वह मटका उल्टा पड़ा हुआ था। गलती खुद की है लेकिन दोष दूसरों पर!

ठीक इसी तरह भगवान भी हम पर कृपा करते हैं लेकिन गलती हमारी ही होती है कि हम उनकी ओर उन्मुख नहीं रहते! अपनी झोली को फैलाकर नहीं रखते!

यदि हमारी ही झोली छोटी पड़ जाये तो भगवान को दोषी क्यों ठहराए?

जिस तरह से सूर्य देव सब पर बराबर प्रकाश डालते हैं- अब हम खुद ही मुख मोड़ के बैठ जाये तो हमारी गलती है ना कि सूर्यदेव की। भगवान की कृपा का अनुभव संत महापुरुषों के सानिध्य से मिलता है! वे अपने ज्ञान के द्वारा उस अविनाशी – जो हमारे ही अन्दर है उसका का अनुभव कराते हैं! समय चाहे कुछ अच्छा हो या बुरा- हर परिस्थति का मुकाबला करने योग बनाते हैं!

  • श्री हंस जी महाराज
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