सच्चा साधु

*सच्चा साधु*
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एक साधु को एक नाविक रोज इस पार से उस पार ले जाता था, बदले मैं कुछ नहीं लेता था! वैसे भी पहले ज़माने में साधु के पास पैसा कहां होता था!*

नाविक सरल था, पढा-लिखा तो नहीं था पर समझ की कमी नहीं थी। साधु रास्ते में ज्ञान की बात कहते, कभी भगवान की सर्वव्यापकता बताते और कभी अर्थसहित श्रीमदभगवद्गीता के श्लोक सुनाते!

नाविक मछुआरा बङे ध्यान से सुनता और बाबा की बात ह्रदय में बैठा लेता!

एक दिन उस पार उतरने पर साधु नाविक को कुटिया में ले गयेऔर बोले, *वत्स, मैं पहले व्यापारी था! धन तो कमाया था पर उस धन के द्वारा अपने परिवार को आपदा से नहीं बचा पाया था! अब ये धन मेरे किसी का काम का नहीं, तुम ले लो! तुम्हारा जीवन संवर जायेगा! तेरे परिवार का भी भला हो जाएगा।*

नाविक ने विनम्रता पूर्वक कहा कि, *नहीं, बाबाजी, मैं ये धन नहीं ले सकता! मुफ्त का धन घर में जाते ही मेरा आचरण बिगाड़ देगा! कोई मेहनत नहीं करेगा! आलसी जीवन लोभ लालच और पाप बढायेगा!*

*आप ही ने मुझे ईश्वर के बारे में बताया! मुझे तो आजकल लहरों में भी कई बार वो परमात्मा नजर आया!जब मै उसकी नजर में ही हूँ तो फिर उस पर अविश्वास क्यों करूं? मैं अपना काम करूं और शेष उसी पर छोङ दूं। जब उनको मैंने अपना सबकुछ मान ही लिया तो निशचित ही उनको भी मेरा ख्याल होगा ही!*

प्रसंग तो समाप्त हो गया पर एक सवाल छोड़ गया कि *इन दोनों पात्रों में साधु कौन था?*

एक वो था- *जिसको दुःख आया तो उसने भगवा पहना, संन्यास लिया, धर्म ग्रंथों का अध्ययन किया, भगवान को याद किया और समझाने लायक स्थिति में भी आ गया फिर भी धन की ममता नहीं छोङ पाया! सुपात्र की तलाश करता रहा!*

और दूसरी तरफ, *वो निर्धन नाविक था जिसने सुबह खा लिया, तो शाम का पता नहीं, फिर भी जिसमें पराये धन के प्रति कोई लालसा नहीं, संसार में लिप्त रहकर भी निर्लिप्त रहना आ गया! उसने भगवा नहीं पहना, सन्यास नहीं लिया, पर उस का ईश्वरीय सत्ता में विश्वास जम गया।*

*उसने श्रीमदभगवद्गीता के श्लोक को ना केवल समझा बल्कि उन्हें व्यवहारिक जीवन में कैसे उतारना है ये सीख गया, और पल भर में धन के मोह को ठुकरा गया।*

*वास्तव में वैरागी कौन?*
*विचार कीजिए।*

*शुभ प्रभात। आज का दिन आपके लिए शुभ एवं मंगलकारी हो।*




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