सेठ जी की परीक्षा

*💐💐सेठ जी की परीक्षा💐💐*

बनारस में एक बड़े धनवान सेठ रहते थे। वह विष्णु भगवान् के परम भक्त थे और हमेशा सच बोला करते थे!

एक बार जब भगवान् सेठ जी की प्रशंशा कर रहे थे तभी माँ लक्ष्मी ने कहा , *”स्वामी, आप इस सेठ की इतनी प्रसंशा किया करते हैं, क्यों न आज उसकी परीक्षा ली जाए!* और जाना जाए कि *क्या वह सचमुच इसके लायक है या नहीं?”*

भगवान् बोले , *” ठीक है ! अभी सेठ गहरी निद्रा में है आप उसके स्वप्न में जाएं और उसकी परीक्षा ले लें।”*

अगले ही क्षण सेठ जी को एक स्वप्न आया।

स्वप्न मेँ धन की देवी लक्ष्मी उनके सामनेँ आई और बोली, *”हे मनुष्य! मैँ धन की दात्री लक्ष्मी हूँ।”*

सेठ जी को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ और वो बोले, *”हे माता आपने साक्षात अपने दर्शन देकर मेरा जीवन धन्य कर दिया है! बताइये मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ?”*

लक्ष्मी बोली, *”कुछ नहीं ! मैं तो बस इतना बताने आयी हूँ कि मेरा स्वाभाव चंचल है, और वर्षों से तुम्हारे भवन में निवास करते-करते मैं ऊब चुकी हूँ और यहाँ से जा रही हूँ।”*

सेठ जी बोले, *”मेरा आपसे निवेदन है कि आप यहीं रहें, किन्तु अगर आपको यहाँ अच्छा नहीं लग रहा है तो मैं भला आपको कैसे रोक सकता हूँ! आप अपनी इच्छा अनुसार जहाँ चाहें जा सकती हैं।”*

और माँ लक्ष्मी उसके घर से चली गई।

थोड़ी देर बाद वे रूप बदल कर पुनः सेठ के स्वप्न मेँ यश के रूप में आयीं और बोलीं, *”सेठ मुझे पहचान रहे हो?”*

सेठ – *“नहीं महोदय, आपको नहीँ पहचाना।*

यश – *”मैं यश हूँ , मैं ही तेरी कीर्ति और प्रसिध्दि का कारण हूँ । लेकिन अब मैँ तुम्हारे साथ नहीँ रहना चाहता क्योँकि माँ लक्ष्मी यहाँ से चली गयी हैं अतः मेरा भी यहाँ कोई काम नहीं।”*

सेठ – *”ठीक है, यदि आप भी जाना चाहते हैं तो वही सही।”*

सेठ जी अभी भी स्वप्न में ही थे और उन्होंने देखा कि *वह दरिद्र हो गए हैं और धीरे-धीरे उनके सारे रिश्तेदार व मित्र भी उनसे दूर हो गए हैं। यहाँ तक की जो लोग उनका गुणगान किया करते थे वो भी अब बुराई करने लगे हैं।*

कुछ और समय बीतने पर माँ लक्ष्मी *धर्म* का रूप धारण कर पुनः सेठ के स्वप्न में आयीं और बोलीं, *”मैँ धर्म हूँ। माँ लक्ष्मी और यश के जाने के बाद मैं भी इस दरिद्रता में तुम्हारा साथ नहीं दे सकता, मैं जा रहा हूँ।”*

*”जैसी आपकी इच्छा।,* सेठ ने उत्तर दिया। और धर्म भी वहाँ से चला गया।

कुछ और समय बीत जाने पर माँ लक्ष्मी *सत्य* के रूप में स्वप्न में प्रकट हुईं और बोलीं, *”मैँ सत्य हूँ। लक्ष्मी , यश, और धर्म के जाने के बाद अब मैं भी यहाँ से जाना चाहता हूँ!“*

ऐसा सुन सेठ जी ने तुरंत सत्य के पाँव पकड़ लिए और बोले, *हे महाराज, मैँ आपको नहीँ जानेँ दूँगा। भले ही सब मेरा साथ छोड़ दें, मुझे त्याग दें पर कृपया आप ऐसा मत करिये, सत्य के बिना मैँ एक क्षण नहीँ रह सकता, यदि आप चले जायेंगे तो मैं तत्काल ही अपने प्राण त्याग दूंगा।“*

*”लेकिन तुमने बाकी तीनो को बड़ी आसानी से जाने दिया, उन्हें क्यों नहीं रोका?”* सत्य ने प्रश्न किया।

सेठ जी बोले, *”मेरे लिए वे तीनो भी बहुत महत्त्व रखते हैं लेकिन उन तीनो के बिना भी मैं भगवान् के नाम का जाप करते-करते उद्देश्यपूर्ण जीवन जी सकता हूँ, परन्तु यदि आप चले गए तो मेरे जीवन में झूठ प्रवेश कर जाएगा और मेरी वाणी अशुद्ध हो जायेगी, भला ऐसी वाणी से मैं अपने भगवान् की वंदना कैसे कर सकूंगा, मैं तो किसी भी कीमत पर आपके बिना नहीं रह सकता!*

सेठ जी का उत्तर सुन सत्य प्रसन्न हो गया और उसने कहा, *“तुम्हारी अटूट भक्ति नेँ मुझे यहाँ रूकने पर विवश कर दिया और अब मैँ यहाँ से कभी नहीं जाऊँगा।”* और ऐसा कहते हुए सत्य अंतर्ध्यान हो गया।

सेठ जी अभी भी निद्रा में थे। थोड़ी देर बाद स्वप्न में *धर्म* वापस आया और बोला, *“मैं अब तुम्हारे पास ही रहूँगा क्योंकि यहाँ सत्य का निवास है!”* सेठ जी ने प्रसन्नतापूर्वक धर्म का स्वागत किया।

उसके तुरंत बाद *यश* भी लौट आया और बोला, “जहाँ सत्य और धर्म हैं वहाँ यश स्वतः ही आ जाता है, इसलिए अब मैं भी तुम्हारे साथ ही रहूँगा।* सेठ जी ने यश की भी आवाभगत की।

और अंत में *माँ लक्ष्मी* आयीं। उन्हें देखते ही सेठ जी नतमस्तक होकर बोले, *“हे देवी! क्या आप भी पुनः मुझ पर कृपा करेंगी?”*

*“अवश्य, जहां सत्य, धर्म और यश हों वहाँ मेरा वास निश्चित है।,”* माँ लक्ष्मी ने उत्तर दिया।

यह सुनते ही सेठ जी की नींद खुल गयी। उन्हें यह सब स्वप्न लगा पर वास्तविकता में वह एक कड़ी परीक्षा से उत्तीर्ण हो कर निकले थे।

हमें भी हमेशा याद रखना चाहिए कि *जहाँ सत्य का निवास होता है वहाँ यश, धर्म और लक्ष्मी का निवास स्वतः ही हो जाता है। सत्य है तो सिध्दि, प्रसिध्दि और समृद्धि है।*

समय के सदगुरु भी यही बतलाते हैं कि – *अगर सत्य साथ है और सत्य का साथ है तो फिर निर्भय होकर इस जीवन को जियो!!*
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*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*




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