भाईयों का प्रेम

भाईयों का प्रेम

दो भाई थे । आपस में बहुत प्यार था। खेत अलग-अलग थे..आजु बाजू में। बड़ा भाई शादीशुदा था…छोटा अकेला।

एक बार खेती बहुत अच्छी हुई..अच्छी फ़सल हुई। अपने खेत में काम करते करते बड़े भाई ने बगल के खेत में काम करते छोटे भाई को खेत देखने का कहकर खाना खाने चला गया..!!

उसके जाते ही छोटा भाई सोचने लगा..खेती तो अच्छी हुई है…इस बार अनाज भी बहुत हुआ है… पर.. मैं तो अकेला हूँ, बड़े भाई की तो गृहस्थी है..पूरा परिवार है..मेरे लिए तो मेरे ये अनाज जरुरत से ज्यादा है..भैया के साथ तो भाभी बच्चे है..उन्हें जरुरत ज्यादा है..!!

ऐसा विचारकर वह अपने 10 बोरे अनाज..बड़े भाई के अनाज की ढेर में डाल देता है..!! तब तक बड़ा भाई भोजन करके आता है और उसके आते ही छोटा भाई भोजन के लिए चला जाता है..।

छोटे भाई के जाते ही वह बड़ा भाई विचारता है कि..मेरा गृहस्थ जीवन तो अच्छे से चल रहा है…छोटे भाई को तो अभी गृहस्थी जमाना है… उसे अभी जिम्मेदारिया सम्हालनी है…!! मै इतने अनाज का क्या करूँगा…ऐसा विचारकर उसने अपने ढ़ेर से 10 बोरे अनाज
छोटे भाई के ढ़ेर में डाल दिया…

दोनों भाईयों के मन में हर्ष था…!!अनाज उतना का उतना ही था..पर….अपनत्व स्नेह वात्सल्य बढ़ा हुआ था…।

सोच अच्छी रखेंगें तो प्रेम अपने आप बढेगा..!! अगर ऐसा प्रेम भाई भाई में हुआ तो दुनिया की कोई भी ताकत आपके परिवार को तोड़ नही सकती…और ऐसा परिवार ही धरती का स्वर्ग बन जाएगा..।

जब तक रिश्ते में दोनो ओर से देने की भावना बनी रहेगी रिश्ता बना रहेगा, जिस दिन भी किसी एक मे लेने की भावना आ गयी, रिश्तों में दूरी बढ़ने लगेगी। ज़रूरत, इच्छा, चाहत—हम इन भावों के साथ नहीं जन्मे होते है, जब हम बड़े होने लगते हैं तो ये तो हमें सामाजिक परिवेश की परिस्थितियां देती हैं। जब सांसारिक परिस्थितियाँ हमारे सपनों की चंचल-सी दुनिया के साथ लड़ बैठती हैं तो हम उस मंथन में रस्सी-से बन जाते हैं। हम उस दुपट्टे से हो जाते हैं जिसकी हर सलवट में कहीं अधूरे सच तो कहीं अप्राकृतिक भाव छिपे होते हैं। स्वार्थी बन जाते है।

सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।

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