अकेले आये थे, अकेले ही जाना है

इस जीवन में कहीं भी रहो – ऐसे रहो जैसे तुम एकान्त में अकेले हो। न कोई साथ है, न कोई साथी। भीड़ में भी रहो तो अकेले रहो। परिवार में भी रहो तो अकेले रहो। हर पल भीतर यह जागरूकता रहे कि तुम अकेले हो।

एक क्षण के लिए भी यह सूत्र हाथ से मत जाने देना। एक क्षण भी यह भ्रान्ति पैदा मत होने देना कि तुम अकेले नहीं हो और कोई तुम्हारे साथ है। यहांँ न कोई साथ है, न कोई साथी हो सकता है। यहांँ सब अकेले हैं।
“मुठ्ठी बाँधे आया जगत में, हाथ पसारे जाना है!”
इसे बदला नहीं जा सकता। थोड़ी-बहुत देर भुलाया जा सकता है लेकिन बदला नहीं जा सकता।
ये सब भुलावे एक तरह के मायावी जाल है। एक प्रकार के नशे हैं। कैसे तुम भुलाते हो, इससे फर्क नहीं पड़ता। कोई नशे में भुलाता है। कोई धन की दौड़ में पड़कर भुलाता है। कोई पद के लिए दीवाना होकर भुलाता है। इसलिए कैसे भुलाते हो, इससे फर्क नहीं पड़ता। लेकिन नशे में थोड़ी देर भुला सकते हो बस और जैसे ही नशा उतरेगा वैसे ही अचानक पाओगे कि तुम अकेले हो। सच्चा सन्त, संन्यासी व सच्चे भक्त वही है, जो जानता है कि मैं अकेला हूंँ और अकेले ही जाना है।

स्वांँसों का आने-जाने के सत्य को समझ कर,थोड़ी देर आंँख बन्द करके अपने आप में डूब जाओ! अकेला “अभ्यास” में रम जाओ!
अपने अन्दर संकल्प करो कि मैं “नाम-सुमिरण” का आनन्द लेता रहूँ। यही मेरी नियति है और यही मेरा स्वभाव है। इसी स्वभाव से हमें अपनी पहचान बनानी है। दूसरों से पहचान बनाने से कुछ भी नहीं होगा।अपने से पहचान बनानी है। दूसरों को जानने से क्या होगा? अपने को ही न जाना और सबको जान लिया, इस जानने का कोई मूल्य नहीं है। मूल में तो अज्ञान रह गया।

जब तुम एकान्त में रहोगे और चुप रहोगे तो भीतर विचार कब तक चलेंगे? उनका मौलिक आधार ही कट गया। जड़ ही कट गयी। तुमने पानी सींचना बन्द कर दिया। वही-वही विचार कुछ दिन तक गूंँजेंगे, लेकिन धीरे-धीरे तुम भी ऊब जाओगे और विचार भी ऊब जायेंगे।

रोज-रोज नया कुछ होता रहे तो विचार में धारा बहती रहती है,स्वाँसों का आना-जाना निरन्तर जारी रहता हैं।

अब अकेले में बैठ गये, न बोलना है, न चलना है। कब तक सिर में वही विचार घूमते रहेंगे? धीरे-धीरे मुर्दा हो जायेंगें और गिर जायेंगे। सूखे पत्तों की तरह झड़ जायेंगे और मन निर्विचार होकर स्वांँसों के साथ एकाकार हो जाएगा। उस दशा का नाम ही मुक्ति है, मोक्ष है, शान्ति है।

  • श्री हंस जी महाराज


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