अनवरत सेवा, सतसंग और भजन-अभ्यास करने से

अनवरत सेवा, सतसंग और भजन-अभ्यास करने से
आपको जीवन के प्रति व्यापक और उदार दृष्टिकोण प्राप्त होगा।
आप अकेलेपन में भी एकता का अनुभव करने लगेंगे।
अंतत: आप आत्मज्ञान के पथ पर आगे बढ़ते ही रहेंगे!
आपको “सभी में एक” और “एक में सभी” का एहसास होगा।
और आप असीम आनंद का अनुभव करेंगे।
रामायण का यह अद्भुत प्रसंग गहरी समझ देता है –
आकर चारि लाख चौरासी। जाति जीव जल थल नभ बासी।।
सीय राममय सब जग जानी। करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी।।

जानि कृपाकर किंकर मोहू। सब मिलि करहु छाड़ि छल छोहू।।
निज बुधि बल भरोस मोहि नाहीं। तातें बिनय करउँ सब पाही।।

करन चहउँ रघुपति गुन गाहा। लघु मति मोरि चरित अवगाहा।।
सूझ न एकउ अंग उपाऊ। मन मति रंक मनोरथ राऊ।।

मति अति नीच ऊँचि रुचि आछी। चहिअ अमिअ जग जुरइ न छाछी।।
छमिहहिं सज्जन मोरि ढिठाई। सुनिहहिं बालबचन मन लाई।।

जौ बालक कह तोतरि बाता। सुनहिं मुदित मन पितु अरु माता।।
हँसिहहि कूर कुटिल कुबिचारी। जे पर दूषन भूषनधारी।।

निज कवित केहि लाग न नीका। सरस होउ अथवा अति फीका।।
जे पर भनिति सुनत हरषाही। ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं।।

जग बहु नर सर सरि सम भाई। जे निज बाढ़ि बढ़हिं जल पाई।।
सज्जन सकृत सिंधु सम कोई। देखि पूर बिधु बाढ़इ जोई।।

आपका आज का दिन आनन्दमय हो!
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