अपेक्षाएं छोड़ खुद से बात करें

*-अपेक्षाएं छोड़ खुद से बात करें-*

एक मटका व गुलदस्ता यदि साथ खरीदें और घर लाते ही 100 रुपये का मटका फूट जाए तो *हमें इस बात का दुःख होता है, क्योंकि मटका इतनी जल्दी फूट जायेगा ऐसी हमें कल्पना भी नहीं थी।*
परंतु
गुलदस्ते के फूल जो 200 रूपये के हैं, वे शाम तक मुरझा जाते है तो भी *हम दुःखी नहीं होते क्योंकि ऐसा होने वाला ही है यह हमें पता था।*

*मटके के इतनी जल्दी फूटने की हमें अपेक्षा नहीं थी, इसलिए फूटने पर दुःख का कारण भी बना। फूलों से अपेक्षा नहीं थी, इसलिए​ वे दुःख का कारण नहीं बने।*

इसका यही आशय निकला कि –
*जिससे जितनी अपेक्षा अधिक उससे उतना ही दुःख अधिक और जिससे जितनी अपेक्षा कम उससे उतना ही दुःख भी कम।*

अपेक्षा और वास्तविकता के बीच मे जो अंतर है, *वही तनाव है।*
हम संतुष्ट रहेंगे तो *हमारा जीवन भी शांतिपूर्ण व सरल रहेगा।*
इच्छाओं का भी अपना चरित्र होता है, *खुद के मन की हो तो बहुत अच्छी लगती हैं दूसरों के मन की हो तो बहुत खटकती है।*

बहुत जरूरी है *ज़िन्दगी में इच्छाओं/अपेक्षाओं के बोझ से थोड़ा खालीपन, यही वो समय है जहां हमारी मुलाकात हमसे होती है।*

इसलिए *अपेक्षाएं छोड़, खुद को खुद के साथ जोड़ने के लिए थोड़ा समय निकालें।*
ताकी *अपने ही अन्दर के आनन्द को प्राप्त किया जा सके!*




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