कामना युक्त या कामना मुक्त जीवन

कामना का अर्थ है, नासमझी की दौड़ यानी जहां हम खडे हैं, वहां नहीं है आनंद। जहां कोई और खड़ा है, वहां है आनंद। वहां मुझे पहुंचना है।
और मजे की बात यह है कि जहां कोई और खड़ा है, और जहां हमें आनंद मालूम पड़ता है, वह भी कहीं और पहुंचना चाहता है! वह भी वहां होने को राजी नहीं है। उसे भी वहां आनंद नहीं है। उसे भी कहीं और आनंद प्रतीत होता है!

नासमझों के लिय कामना का अर्थ है – आनंद कहीं और है। उस जगह को छोड़कर जहां हम खड़े हैं, और कहीं भी हो सकता है आनंद। उस जगह नहीं है, जहां हम हैं। जहाँ हम हैं, वहां आनंद नहीं है। वह तो कहीं भी हो सकता है पृथ्वी पर; पृथ्वी के बाहर, चांदत्तारों पर; लेकिन वहां नहीं है, जिस जगह को हम घेरे हुए या घेरते हैं। जिस होने की स्थिति में हम हैं, वह जगह आनंदरिक्त है!

कामना से मुक्ति का अर्थ है, हम जहाँ कहीं हो या न हो आनंद, जहां हम हैं, वहां पूरा है; जो हम हैं, वहां पूरा है। संतृप्ति की पराकाष्ठा कामना से मुक्ति है।
जब हम में इंच भर भी कहीं और जाने का मन नहीं होगा , हम केवल अपने आप में ही मगन होना चाहेंगे – उसी समय हम कामना से मुक्त हो जाएंगे।*

कामना के बीज, कामना के अंकुर, कामना के तूफान क्यों उठते हैं? 
क्या इसलिए कि सच में ही आनंद कहीं और है? या इसलिए कि जहां हम खड़े हैं, उस जगह से अपरिचित हैं?

अज्ञानी से पूछिएगा तो वह कहेगा, कामना इसलिए उठती है कि सुख कहीं और है। और अगर खिन तक भी जाना है तो बिना कामना के मार्ग से जाइएगा कैसे? 
लेकिन सदगुरु के सानिध्य पाए ज्ञानी से पूछिएगा तो वह कहेगा कि,  कामना के अंधड़ इसलिए उठते हैं कि जहां आप हैं, जो आप हैं, उसका आपको कोई पता ही नहीं है। 

काश, हम समझने लग जाएँ और हमको पता चल जाए कि हम क्या हैं? तो कामना ऐसे ही तिरोहित हो जाती है, जैसे सुबह सूरज के उगने पर ओस-कण तिरोहित हो जाते हैं।

इसलिय हमें स्वयं को जानने के लिय जरूरी है कि पहले समय के सदगुरु से स्वयं का बोध प्राप्त करें, उस विधि को जानें तब उसका अनवरत अभ्यास करके जहाँ भी है, जैसे भी हैं – कामना मुक्त जीवन, एक आनन्ददायी जीवन जी सकते हैं!
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