*गुरु की सीख*
पुराने समय में एक आश्रम में गुरु और शिष्य मूर्तियां बनाने का काम करते थे।
मूर्तियां बेचकर जो धन मिलता था, उससे ही दोनों का जीवन चल रहा था।
गुरु की वजह से शिष्य बहुत अच्छी मूर्तियां बनाने लगा था और उसकी मूर्तियां ज्यादा कीमत में बिकने लगी थी।
कुछ ही दिनों शिष्य को इस बात घमंड होने लगा था कि *वह ज्यादा अच्छी मूर्तियां बनाने लगा है!*
लेकिन गुरु उसे रोज यही कहते थे कि *बेटा और मन लगाकर काम करो। काम में अभी भी पूरी कुशलता नहीं आई है।*
ये बातें सुनकर शिष्य को लगता था कि *गुरुजी की मूर्तियां मुझसे कम दाम में बिकती हैं, शायद इसीलिए ये मुझसे जलते हैं और ऐसी बातें करते हैं।*
जब कुछ दिनों तक लगातार गुरु ने उसे अच्छा काम करने की सलाह दी तो *एक दिन शिष्य को गुस्सा आ गया।*
शिष्य ने गुरु से कहा कि *गुरुजी मैं आपसे अच्छी मूर्तियां बनाता हूं! मेरी मूर्तियां ज्यादा कीमत में बिकती हैं! फिर भी आप मुझे ही सुधार करने के लिए कहते हैं।*
गुरु समझ गए कि *शिष्य में अहंकार आ गया है, तभी ये क्रोधित हो रहा है।*
उन्होंने शांत स्वर में कहा कि *बेटा जब मैं तुम्हारी उम्र का था, तब मेरी मूर्तियां भी मेरे गुरु की मूर्तियों से ज्यादा दाम में बिकती थीं। एक दिन मैंने भी तुम्हारी ही तरह मेरे गुरु से भी यही बातें कही थीं। उस दिन के बाद गुरु ने मुझे सलाह देना बंद कर दिया और मेरी कला का विकास नहीं हो पाया।*
मैं नहीं चाहता कि *तुम्हारे साथ भी वही हो जो मेरे साथ हुआ था।*
ये बातें सुनकर *शिष्य शर्मिंदा हो गया और गुरु से क्षमा मांगी।*
इसके बाद वह गुरु की हर आज्ञा का पालन करता और धीरे-धीरे उसे अपनी कला की वजह से दूर-दूर तक ख्याति मिलने लगी।
इस प्रसंग की सीख यह है कि *हमें भी अपने गुरु महाराजी की आज्ञा का पूरा सम्मान और पालन करना चाहिए और गुरु की दी हुई सलाह पर गंभीरता से अमल करना चाहिए। गुरु के सामने कभी भी अपनी कला पर घमंड नहीं करना चाहिए वरना हमारी योग्यता में निखार नहीं आ पाएगा, हमारा आत्मविकास रुक जायेगा!*
क्योंकि यह सन्तों ने कहा है कि –
*”गुरू बिन ज्ञान न उपजै, गुरू बिन मिलै न मोक्ष!*
*गुरू बिन लखै न सत्य को, गुरू बिन मिटै न दोष!!”*
*🙏🏻सुप्रभात*🙏🏽🙏🏾🙏🏼