जाको राखे साँईयां, मार सके न कोई।
बाल ना बाँका करि सकें,जो जग बैरी होई।।

संसार के सारे रिश्ते झूठे हैं,
केवल आत्मा का रिश्ता सच्चा है!

एक राजा था! उसके कोई पुत्र नहीं था।राजा बहुत दिनों से पुत्र की प्राप्ति के लिए आशा लगाए बैठा था! लेकिन पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई! उसके सलाहकारों ने तान्त्रिकों से सहयोग लेने को कहा।तान्त्रिकों की तरफ से राजा को सुझाव मिला कि यदि किसी बच्चे की बलि दी जाए, तो राजा को पुत्र की प्राप्ति हो सकती है।

राजा ने राज्य में ढिंढोरा पिटवाया कि जो अपना बच्चा बलि चढ़ाने के लिए राजा को देगा, उसे राज्य की तरफ से बहुत सारा धन किया जाएगा।

एक परिवार में कई बच्चे थे! गरीबी भी बहुत थी। एक ऐसा बच्चा भी था – जो गुरु महाराज जी पर आस्था रखता था तथा सन्तों के सतसंग में अधिक समय देता था।

राजा की मुनादी सुनकर परिवार को लगा कि क्यों न इसे राजा को दे दिया जाए? क्योंकि यह निकम्मा है, कुछ काम धाम भी नहीं करता है और हमारे किसी काम का भी नहीं है और इसे देने पर, राजा प्रसन्न होकर, हमें बहुत सारा धन देगा।
ऐसा ही किया गया,बच्चा राजा को दे दिया गया।

राजा ने बच्चे के बदले उसके परिवार को काफी धन दिया। राजा के तान्त्रिकों द्वारा बच्चे की बलि देने की तैयारी हो गई। राजा को भी बुला लिया गया! बच्चे से पूछा गया कि तुम्हारी आखिरी इच्छा क्या है? और यह बात राजा ने बच्चे से पूछी और तान्त्रिकों ने भी पूछी।

बच्चे ने कहा कि- मेरे लिए रेत मंँगा दी जाए!
राजा ने कहा- बच्चे की इच्छा पूरी की जाये।

अतः रेत मंँगाया गया। बच्चे ने रेत से चार ढेर बनवाए! एक-एक करके बच्चे ने तीन रेत की ढेरों को लात मार दी और चौथे ढेर के सामने हाथ जोड़ कर बैठ गया और खूब रोने लगा! गुरु महाराज जी का आशीर्वाद प्राप्त करके राजा से कहा कि अब जो करना है,आप लोग कर लें!

यह सब देखकर तान्त्रिक डर गये और उन्होंने बच्चे से पूछा। पहले तुम यह बताओ कि यह तुमने क्या किया है?
राजा ने भी यही सवाल बच्चे से पूछा।

तो बच्चे ने कहा कि – पहली ढेरी मेरे माता-पिता के नाम की थी। मेरी रक्षा करना इनका कर्तव्य था परन्तु उन्होंने अपने कर्तव्य का पालन न करके पैसे के लिए मुझे बेच दिया! इसलिए मैंने इस रेत की ढेरी को लात मार दी। मुझे ऐसे माता-पिता से कोई मोह नहीं है।

दूसरी रेत की ढेर मेरे सगे सम्बन्धियों की थी। उन्होंने भी मेरे माता पिता को नहीं समझाया कि ये सतसंग में ही तो जाता है, किसी की चोरी, ठगी नहीं करता!इसे मत बेचो! ऐसा किसी भी गाँव परिवार वालों ने नहीं कहा।अतः मैंने दूसरी ढेरी को भी लात मार दिया। इनसे भी मुझे कोई मोह नहीं है।

और तीसरी रेत की ढेरी हे राजन, ये आपके नाम की है। क्योंकि राज्य की प्रजा की रक्षा करना, राजा का ही धर्म होता है परन्तु जब राजा ही मेरी बलि देना चाह रहा है तो ये रेत की ढेरी को भी मैंने लात मार दी। मुझे ऐसे राजा पर भी कोई मोह नहीं है, कोइ विश्वास भी नहीं है।

और चौथी ढेरी, हे राजन,ये मेरे सच्चे गुरु दरबार में मेरे महाराज जी के नाम की है।अब सिर्फ और सिर्फ अपने श्री सदगुरुदेव महाराज जी पर ही मुझे भरोसा है। इसलिए यह एक रेत की ढेरी मैंने छोड़ दी है।इसको मैंने लात नहीं मारा! इसको मैंने प्रणाम किया। श्री गुरु महाराज जी से मैंने निर्भय होने का आशीर्वाद लिया इसीलिए मैं अब मौत से भी नहीं डर रहा हूंँ।

बच्चे का उत्तर सुनकर राजा अन्दर तक हिल गया। उसने सोचा,कि पता नहीं, बच्चे की बलि देने के पश्चात भी पुत्र की प्राप्ति होगी भी या नहीं होगी। इसलिए क्यों ना इस बच्चे को ही अपना पुत्र मान लिया जाये?

इतना समझदार और गुरु भक्त बच्चा है,ऐसा अच्छा बच्चा और कहांँ मिलेगा। काफी सोच-विचार के बाद राजा ने उस बच्चे को अपना पुत्र बना लिया और राजकुमार घोषित कर दिया।

राजा ने बच्चे से पूछा कि इतना बैराग्य और समझदारी तुम्हें कहांँ से प्राप्त हुई?
बच्चे ने कहा कि मेरे गुरु महाराज जी ने मुझे आत्मज्ञान दिया है जो मुझे काल से भी निर्भय बना दिया है।

राजा ने कहा मुझे भी ऐसा ज्ञान प्राप्त करना है और अब तुम राजा बनकर राज्य की सेवा करो! मैं श्री गुरु महाराज जी की सेवा करूंँगा! अपने जीवन का कल्याण करूंँगा। उधर बच्चे के माता-पिता परिवार गांँव वाले डर रहे थे कि ये बच्चा हम सबको बन्द करके, हमें सजा देगा।

लेकिन बच्चे ने कहा कि यह सब आप सबकी तथा गुरु महाराज जी की कृपा से आपने अगर मुझे नहीं बेचा नहीं होता? तो मैं राजा नहीं बन पाता।
बच्चे ने अपनी सकारात्मक सोच महाराजी के ज्ञान अभ्यास से जो निडरता मिली – उस विवेक के आधार पर सबको माफ भी कर दिया।
कहावत है –
कबीरदास जी कहते हैं कि-
जो तोको काँटा बुवै ताहि बोव तू फूल।
तोहि फूल को फूल है वाको है तिरसुल॥
यानि जो तुम्हारे लिए काँटा बोये (परेशानी या मुसीबत खड़ी करे), तुम उसके लिए भी फूल ही बोना (उसके आचरण के विरोध में भी अपने अच्छे स्वभाव को बनाये रखो), इससे तुमको तो फूल ही फूल मिलेंगे (तुम्हारा स्वभाव और मन-बुद्धि शीतल रहेगी) और उसको त्रिशूल/कांटे मिलेंगे (उसने जो नफरत रुपी बीज तुम्हारे लिए बोये हैं उसका फल उसको ही मिलेगा)!

हमें तो अपने गुरु महाराजी पर विश्वास होना चाहिय !
जाको राखे साँईयां, मार सके न कोई।
बाल ना बाँका करि सकें,जो जग बैरी होई।।
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