जागने की संभावना

जागने की संभावना
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एक विश्रामालय में दो व्यक्ति आराम-कुर्सियों पर बैठे हुए थे। एक युवा था और एक वृद्ध था।
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जो वृद्ध था वह आंखें बंद किये बैठा था, पर बीच-बीच में मुस्करा उठता था।
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और कभी-कभी हाथ से और चेहरे से ऐसे इशारे करता था, जैसे कुछ दूर हटा रहा हो।
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युवक से बिना पूछे न रहा गया। वृद्ध ने एक बार आंखें खोली, तो उसने पूछ ही लिया…
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‘इस अत्यंत कुरूप विश्रामगृह में ऐसा क्या है, जो आप में मुस्कराहट ला देता है?’
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वृद्ध बोला, ‘मैं अपने से कुछ कहानियां कह रहा हूं, उनमें ही हंसी आ जाती है।’
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उस युवक ने पूछा, ‘और बार-बार हाथ से हटाते क्या हैं?’
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वृद्ध हंसने लगा और बोला, ‘उन कहानियों को जिन्हें बहुत बार सुन चुका हूं।’
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युवक ने कहा, ‘आप भी क्या कहानियों से मन समझा रहे हैं।’
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उत्तर में वृद्ध ने कहा था, ‘बेटे, एक दिन समझोगे कि पूरा ही जीवन कहानियों से अपने को समझा लेने का नाम है।’
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निश्चित ही जीवन जैसा मिलता है, वह कहानी ही है। और कहानियों से अपने को समझा लेने का ही नाम जीवन है।
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जिसे हम जीवन समझते हैं, वह जीवन नहीं, केवल एक सपना है। नींद टूटने पर ज्ञात होता है कि हाथ में कुछ भी नहीं है- जो था, वह था नहीं, बस, केवल दिखता था।
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पर, इस स्वप्न-जीवन से सत्य-जीवन में जागा जा सकता है। निद्रा छोड़ी जा सकती है।
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जो सो रहा है, वह जाग भी सकता है। उसके सो सकने की संभावना ही, उसके जागने की भी संभावना है!
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