ज्ञान की पहचान

ज्ञान की पहचान !!

किसी जंगल में एक संत महात्मा रहते थे! सन्यासियों वाली वेशभूषा थी और बातों में सदाचार का भाव, चेहरे पर इतना तेज था कि कोई भी इंसान उनसे प्रभावित हुए नहीं रह सकता था!

एक बार जंगल में शहर का एक व्यक्ति आया और वो जब महात्मा जी की झोपड़ी से होकर गुजरा तो देखा बहुत से लोग महात्मा जी के दर्शन करने आये हुए थे! वो महात्मा जी के पास गया और बोला कि आप अमीर भी नहीं हैं, आपने महंगे कपडे भी नहीं पहने हैं, आपको देखकर मैं बिल्कुल प्रभावित नहीं हुआ फिर ये इतने सारे लोग आपके दर्शन करने क्यों आते हैं?

महात्मा जी ने उस व्यक्ति को अपनी एक अंगूठी उतार कर दी और कहा कि आप इसे बाजार में बेच कर आएं और इसके बदले एक सोने की माला लेकर आना!

अब वो व्यक्ति बाजार गया और सब की दुकान पर जा कर उस अंगूठी के बदले सोने की माला मांगने लगा! लेकिन सोने की माला तो क्या उस अंगूठी के बदले कोई पीतल का एक टुकड़ा भी देने को तैयार नहीं था! थक हार के व्यक्ति वापस महात्मा जी के पास पहुंचा और बोला कि इस अंगूठी की तो कोई कीमत ही नहीं है!

महात्मा जी मुस्कुराये और बोले कि अब इस अंगूठी को सुनार गली में जौहरी की दुकान पर ले जाओ! वह व्यक्ति जब सुनार की दुकान पर गया तो सुनार एक माला नहीं बल्कि अंगूठी के बदले पांच माला देने को तयार हो गया!

वह व्यक्ति बड़ा हैरान हुआ कि इस मामूली सी अंगूठी के बदले कोई पीतल की माला देने को तैयार नहीं हुआ लेकिन ये सुनार कैसे 5 सोने की माला दे रहा है! व्यक्ति वापस महात्मा जी के पास गया और उनको सारी बातें बतायीं.

अब महात्मा जी बोले कि चीजें जैसी ऊपर से दिखती हैं, अंदर से वैसी नहीं होती! ये कोई मामूली अंगूठी नहीं है बल्कि *ये एक हीरे की अंगूठी है जिसकी पहचान केवल सुनार ही कर सकता था! इसलिए वह 5 माला देने को तैयार हो गया!

ठीक वैसे ही मेरी वेशभूषा को देखकर तुम मुझसे प्रभावित नहीं हुए लेकिन ज्ञान का प्रकाश लोगों को मेरी ओर खींच लाता है!
वह व्यक्ति महात्मा जी की बातें सुनकर बड़ा शर्मिंदा हुआ!

यह सच है की बाहरी वेशभूषा से व्यक्ति की पहचान नहीं होती बल्कि आचरण और ज्ञान से व्यक्ति की पहचान होती है!

संतों ने कहा भी है कि –
भेष देख मत भूलिए, पूछ लिजिय ज्ञान!
मोल करो तलवार की, पड़ी रहन दो म्यान!!
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