दिल के करीब आ जाओ !

दिल के करीब आ जाओ !

एक सन्यासी अपने शिष्यों के साथ गंगा नदी के तट पर नहाने पहुंछे! वहां एक ही परिवार के कुछ लोग अचानक आपस में बात करते-करते एक दूसरे पर क्रोधित हो उठे और जोर-जोर से चिल्लाने लगे!

संयासी यह देख तुरंत पलटेऔर अपने शिष्यों से पूछा ; ”क्रोध में लोग एक दूसरे पर चिल्लाते क्यों हैं?’

शिष्य कुछ देर सोचते रहे! एक ने उत्तर दिया, ”क्योंकि हम क्रोध में शांति खो देते हैं इसलिए!”

”पर जब दूसरा व्यक्ति हमारे सामने ही खड़ा है तो भला उस पर चिल्लाने की क्या ज़रुरत है? जो कहना है वो आप धीमी आवाज़ में भी तो कह सकते हैं!” सन्यासी ने पुनः प्रश्न किया!

कुछ और शिष्यों ने भी उत्तर देने का प्रयास किया पर बाकी लोग संतुष्ट नहीं हुए!

अंततः सन्यासी ने समझाया कि, “जब दो लोग आपस में नाराज होते हैं तो उनके दिल एक दूसरे से बहुत दूर हो जाते हैं और इस अवस्था में वे एक दूसरे को बिना चिल्लाये नहीं सुन सकते! वे जितना अधिक क्रोधित होंगे उनके दिलों के बीच की दूरी उतनी ही अधिक हो जाएगी और उन्हें उतनी ही तेजी से चिल्लाना पड़ेगा!

क्या होता है जब दो लोग प्रेम में होते हैं? तब वे चिल्लाते नहीं बल्कि धीरे-धीरे बात करते हैं क्योंकि “उनके दिल करीब होते हैं ! उनके बीच की दूरी नाम मात्र की रह जाती है!”

सन्यासी ने बोलना जारी रखा , ”और जब वे एक दूसरे को हद से भी अधिक चाहने लगते हैं तो क्या होता है?

तब वे बोलते भी नहीं, वे सिर्फ एक दूसरे की तरफ देखते हैं और सामने वाले की बात समझ जाते हैं!
और यह स्थिति भक्त और भगवान् के बीच के प्रेम में परिलक्षित होती है! वह अविनाशी ब्रह्म जो हमारे अन्दर बैठा है – जब सद्गुरु की कृपा से उसका दीदार होता हैं तो वहाँ बाहरी इन्द्रियों के द्वारा प्रतिक्रिया गौण हो जाती है! उस सर्वव्यापी ब्रह्म के लिय कहा है कि –
बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना।
कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥

आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी बकता बड़ जोगी॥
अर्थात्, वह (ब्रह्म) बिना ही पैर के चलता है! बिना ही कान के सुनता है! बिना ही हाथ के नाना प्रकार के काम करता है! बिना मुँह (जिह्वा) के ही सारे (छहों) रसों का आनंद लेता है और बिना वाणी के बहुत योग्य वक्ता है।

आज हम बहिर्मुखी हो चुके हैं तभी मनचाहा न होने के कारण अपनों पर ही चिल्लाना शुरू कर देते हैं! जबकि आनन्द और प्रेम का श्रोत हमारे अन्दर है – जिसके लिय हमें अंतर्मुखी होना होगा!

अतः किसी से बात करें तो इस बात का ध्यान रहे कि, हमारे हृदय आपस में दूर न होने पाएं!
हम ऐसे शब्द कभी भी ना बोलें कि जिससे हमारे दिलों के बीच की दूरी बढे!

अन्यथा तो एक समय ऐसा आएगा कि ये दूरी इतनी अधिक बढ़ जाएगी कि *हमें लौटने का रास्ता भी नहीं मिलेगा और केवल पश्चाताप की अग्नि में झुलसना पड़ेगा!

इसलिय हमको संकल्यपित होना होगा कि हमको यथासंभव अंतर्मुखी बने रहना है और हर स्वांस में जीवन का आनन्द लेते रहना है!

🌹🙏🏻आपका जीवन ज्ञान के आनन्द में महकता रहे!🙏🏻🌹




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