दुःख का कारण- हमारी सोच

💐💐 *दुःख का कारण- हमारी सोच* 💐💐

एक शहर में एक आलीशान और शानदार घर था! वह शहर का सबसे ख़ूबसूरत घर माना जाता था! लोग उसे देखते, तो तारीफ़ किये बिना नहीं रह पाते!

एक बार घर का मालिक किसी काम से कुछ दिनों के लिए शहर से बाहर चला गया।

कुछ दिनों बाद जब वह वापस लौटा तो देखा कि *उसके मकान से धुआं उठ रहा है! करीब जाने पर उसे घर से आग की लपटें उठती हुई दिखाई पड़ी! उसका ख़ूबसूरत घर जल रहा था! वहाँ तमाशबीनों की भीड़ जमा थी, जो उस घर के जलने का तमाशा देख रही थी!*

अपने ख़ूबसूरत घर को अपनी ही आँखों के सामने जलता हुए देख वह व्यक्ति चिंता में पड़ गया! उसे समझ नहीं आ रहा था कि *अब क्या करे? कैसे अपने घर को जलने से बचाये?*
वह लोगों से मदद की गुहार लगाने लगा कि *वे किसी भी तरह उसके घर को जलने से बचा लें!*

उसी समय उसका बड़ा बेटा वहाँ आया और बोला, *“पिताजी, घबराइए मत! सब ठीक हो जायेगा!”*

उसकी इस बात पर कुछ नाराज़ होता हुआ पिता बोला, *“कैसे न घबराऊँ? मेरा इतना ख़ूबसूरत घर जल रहा है!”*

बेटे ने उत्तर दिया, *“पिताजी, माफ़ कीजियेगा! एक बात मैं आपको अब तक बता नहीं पाया था! कुछ दिनों पहले मुझे इस घर के लिए एक बहुत बढ़िया खरीददार मिला था! उसने मेरे सामने मकान की कीमत की ३ गुनी रकम का प्रस्ताव रखा!*
सौदा इतना अच्छा था कि *मैं इंकार नहीं कर पाया और मैंने आपको बिना बताये सौदा तय कर लिया!”*

ये सुनकर पिता की जान में जान आयी! उसने राहत की सांस ली और आराम से यूं खड़ा हो गया- *जैसे सब कुछ ठीक हो गया हो! अब वह भी अन्य लोगों की तरह तमाशबीन बनकर उस घर को जलते हुए देखने लगा!*

तभी उसका दूसरा बेटा आया और बोला, *“पिताजी हमारा घर जल रहा है और आप हैं कि बड़े आराम से यहाँ खड़े होकर इसे जलता हुआ देख रहे हैं! आप कुछ करते क्यों नहीं?”*

बेटा चिंता की बात नहीं है- *तुम्हारे बड़े भाई ने ये घर बहुत अच्छे दाम पर बेच दिया था! अब ये घर हमारा नहीं रहा! इसलिए अब कोई फ़र्क नहीं पड़ता.”* पिता बोला.।

*“पिताजी भैया ने सौदा तो कर दिया था! लेकिन अब तक सौदा पक्का नहीं हुआ है! अभी हमें पैसे भी नहीं मिले हैं! अब बताइए, इस जलते हुए घर के लिए कौन पैसे देगा?”*

यह सुनकर पिता *फिर से चिंतित हो गया और सोचने लगा कि कैसे आग की लपटों पर काबू पाया जाए! वह फिर से पास खड़े लोगों से मदद की गुहार लगाने लगा!*

तभी उसका तीसरा बेटा आया और बोला, *“पिता जी घबराने की सच में कोई बात नहीं है! मैं अभी उस आदमी से मिलकर आ रहा हूँ, जिससे बड़े भाई ने मकान का सौदा किया था!*

उसने कहा है कि *मैं अपनी जुबान का पक्का हूँ!*
मेरे आदर्श कहते हैं कि *चाहे जो भी हो जाये! अपनी जुबान पर कायम रहना चाहिए! इसलिए अब जो हो जाये – जबान दी है तो घर ज़रूर लूँगा और उसके पैसे भी दूंगा!”*

*पिता फिर से चिंतामुक्त हो गया और घर को जलते हुए देखने लगा!*

यह प्रसंग हम आसानी से समझ सकते हैं कि *एक ही परिस्थिति में व्यक्ति का व्यवहार भिन्न-भिन्न हो सकता है और यह व्यवहार उसकी सोच के कारण होता है!*
उदाहारण के लिए जलते हुए घर के मालिक को ही लीजिये – *घर तो वही था, जो जल रहा था। लेकिन उसके मालिक की सोच में कई बार परिवर्तन आया और उस सोच के साथ उसका व्यवहार भी बदलता गया!*

असल में, जब हम किसी चीज़ से जुड़ जाते हैं तो उसके छिन जाने पर या दूर जाने पर हमें दुःख होता है लेकिन यदि हम किसी चीज़ को ख़ुद से अलग कर देखते हैं तो एक अलग सी आज़ादी महसूस करते हैं और दु:ख हमें छूता तक नहीं है!

इसलिए *दु:खी होना और ना होना पूर्णतः हमारी सोच और मानसिकता (mindset) पर निर्भर करता है! सोच पर नियंत्रण रखकर या उसे सही दिशा देकर हम बहुत से दु:खों और परेशानियों से न सिर्फ बच सकते हैं बल्कि जीवन में नई ऊँचाइयाँ भी प्राप्त कर सकते हैं।*
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*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है!!*
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