बदलाव – अपने में

बदलाव – अपने में

बूढ़े दादा जी को उदास बैठे देख बच्चों ने पूछा, “क्या हुआ दादा जी, आज आप इतने उदास बैठे क्या सोच रहे हैं?”

“कुछ नहीं , बस यूँही अपनी ज़िन्दगी के बारे में सोच रहा था!”, दादा जी बोले ।

“जरा हमें भी अपनी लाइफ के बारे में बताइये न …” बच्चों ने ज़िद्द् की।

दादा जी कुछ देर सोचते रहे और फिर बोले, “जब मैं छोटा था, मेरे ऊपर कोई जिम्मेदारी नहीं थ , मेरी कल्पनाओं की भी कोई सीमा नहीं थी, मैं दुनिया बदलने के बारे में सोचा करता था!

जब मैं थोड़ा बड़ा हुआ – बुद्धि कुछ बढ़ी तो सोचने लगा कि ये दुनिया बदलना तो बहुत मुश्किल काम है!
इसलिए मैंने अपना लक्ष्य थोड़ा छोटा कर लिया! सोचा दुनिया न सही मैं अपना देश तो बदल ही सकता हूँ!

पर जब कुछ और समय बीता- मैं अधेड़ होने को आया तो लगा कि ये देश बदलना भी कोई मामूली बात नहीं है! हर कोई ऐसा नहीं कर सकता है! चलो मैं बस अपने परिवार और करीबी लोगों को बदलता हूँ!

पर अफ़सोस कि मैं वो भी नहीं कर पाया !

और अब जब मैं इस दुनिया में कुछ दिनों का ही मेहमान हूँ तो मुझे एहसास होता है कि अगर मैंने खुद को बदलने का सोचा होता तो मैं ऐसा ज़रूर कर पाता और हो सकता है मुझे देखकर मेरा परिवार भी बदल जाता और क्या पता उनसे प्रेरणा लेकर ये देश भी कुछ बदल जाता और तब शायद मैं इस दुनिया को भी बदल पाता!

ये कहते-कहते दादा जी की आँखें नम हो गयीं और वे धीरे से बोले, “बच्चों ! तुम मेरी जैसी गलती मत करना! कुछ और बदलने से पहले खुद को बदलना बाकि सब अपने आप बदलता चला जायेगा!

सचमुच में, हम सभी में दुनिया बदलने की ताकत है पर इसकी शुरआत खुद से ही करनी होती है! कुछ और बदलने से पहले हमें खुद को बदलना होगा! हमें खुद को तैयार करना होगा! अपने कौशल को मजबूत करना होगा! अपने attitude को सकारात्मक बनाना होगा! अपने लक्ष्य को फौलाद करना होगा और तभी हम वो हर एक बदलाव ला पाएंगे जो हम सचमुच लाना चाहते हैं।
प्रेम रावत भी यही कहते हैं कि जब हर एक आदमी शांति का अनुबह्व करने लगेगा तो विश्व शांति स्वत हो जाएगी!
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