बिना ध्यान के जीवन में शांति असंभव

🌿बिना ध्यान के जीवन में शांति असंभव🌿

महत्वपूर्ण सवाल अभ्यास से ध्यान का है। मन को स्वांसों की धुन में लीन करके जोर ध्यान पर है। ध्यान का अर्थ है : स्वार्थ, परम स्वार्थ, आत्यंतिक स्वार्थ क्योंकि इस जगत में ध्यान से ज्यादा निजी कोई बात नहीं है। ध्यान का कोई सामाजिक संदर्भ भी नहीं है। ध्यान का अर्थ है : अपने एकांत में उतर जाना, अकेले हो जाना, मौन, शून्य, निर्विचार, निर्विकल्प। उस निर्विचार में, उस निर्विकल्प में आकाश बादलों से आच्छादित नहीं होता और भीतर का सूरज प्रकट होता है। सब जगमग हो जाता है। सब रोशन हो उठता है। फिर तुम्हारे भीतर प्रेम के फूल खिलते हैं, आनंद के झरने फूटते हैं, शांति के रस की धाराएं बहती हैं। फिर इसे बांटो और बांटना ही पड़ेगा। इसी बांटने को मानवता के प्रति समर्पित होकर परोपकार कहते हैं।

जिसके जीवन में ध्यान नहीं है, वह तो दूसरे को सताएगा और अवश्य सताएगा ही। अपरिहार्यरूपेण सताएगा। क्यों? क्योंकि जो खुद दुखी है, वह दुख ही बांट सकता है। गैर-ध्यानी दुखी होगा ही, नहीं तो कोई ध्यान तलाशे क्यों? अगर बिना ध्यान के जीवन में शांति हो सकती तो शांति कभी की हो गई होती। बिना ध्यान के जीवन में शांति होती ही नहीं है। ध्यान के बिना शांति का बीज टूटता ही नहीं, अंकुरण ही नहीं होता। फूल तो लगेंगे कैसे और फल आएंगे कैसे? ध्यान तो शांति के बीजों को बोना है। ध्यान में जैसे ही मन स्वांसों के साथ एकाकार होता है तो शांति के बीज का अंकुरण हो जाता है और शांति के फूल आ जाते हैं। तभी भीतर से शांति की खुशबू चारों ओर फैल जाती है।




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