भक्ति बिना नहिं निस्तरै, लाख करै जो काय।

भक्ति बिना नहिं निस्तरै, लाख करै जो काय।
शब्द सनेही है रहै, घर को पहुचे सोय।।

अर्थ :- भक्ति के बिना उद्धार होना संभव नहीं है चाहे कोई लाख प्रयत्न करे सब व्यर्थ है। जो जीव सद्गुरु के प्रेमी है, सत्यज्ञान का आचरण करने वाले हैं – वे ही अपने उद्देश्य को प्राप्त कर सकते हैं।

गुरु को मानुष जानते, ते नार कहिए अन्ध।
होय दुखी संसार मे, आगे जम की फन्द।।

अर्थ :- कबीरदास जी ने सांसारिक प्राणियो को ज्ञान का उपदेश देते हुए कहा है कि जो मनुष्य, गुरु को सामान्य प्राणी (मनुष्य) समझते हैं उनसे बड़ा मूर्ख जगत मे अन्य कोई नहीं है! वह आँखों के होते हुए भी अन्धे के समान है तथा जन्म-मरण के भव-बंधन से मुक्त नहीं हो पाता।

साधु दर्शन महाफल, कोटि यज्ञ फल लेह।
इक मन्दिर को का पड़ी, नगर शुद्ध करि लेह।।

अर्थ :- साधु संतों का दर्शन महान फलदायी होता है, इससे करोडो यज्ञों के करने से प्राप्त होने वाले पूण्य फलों के बराबर फल प्राप्त होता है। सन्तो का दर्शन, उनके दर्शन के प्रभाव से एक मन्दिर नहीं, बल्कि पूरा गांव पवित्र और शुद्ध हो जाता है। सन्तों के ज्ञान रूपी अमृत से अज्ञानता का अन्धकार नष्ट हो जाता है।

मात पिता सुत इस्तरी, आलस बन्धू कानि ।
साधु दरश को जब चलै, ये अटकावै खानि ।।

जब आप साधु संतों का दर्शन प्राप्त करने की इच्छा से चलने को तैयार होंगे उस समय माता-पिता, पुत्र-स्त्री, भाई आदि तुम्हें रोकेंगे । ये माया मोह रुपी रिश्ते ही सबसे बडे बाधक है ।

गुरु नारायन रूप है, गुरु ज्ञान को घाट ।
सतगुरु बचन प्रताप सों, मन के मिटे उचाट ।।

गुरु को साक्षात परमेश्वर का रूप जानो और संसारिक विषयों से मुक्ति प्रदान करने वाला गुरुज्ञान, सरोवर का घाट है। ऐसे गुरु के वचनों से मन का सारा सन्देह, सारा कलेश मिट जाता है तथा हृदय शान्त हो जाता है।



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