भक्त को हमेशा अपने गुरुम्हाराजी के प्रति सेवा भाव से केन्द्रित होना चाहिय और वह भी छह कपट से रहित, अनुशासन युक्त!

एक व्यक्ति हनुमानजी के मन्दिर गया उसको कोई सन्तान नहीं थी, उसने हनुमानजी से आराधना की, हे हनुमानजी! आपकी कृपा से सभी दुर्गम कार्य सुगम हो जाते है, “दुर्गम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते” कृपा करें मुझे एक सुन्दर सा बेटा अगर मिले तो मैं आपको हीरों का हार चढाऊं, पुजारी ने कहा कोई चिंता मत कीजिये हम आपकी ओर से अनुष्ठान करेंगे, पुजारी को भी लोभ था हीरे का हार चढेगा तो अपने को ही मिलेगा।

चालीस दिन का पाठ किया, संयोग से, सौभाग्य से उनकी पत्नी गर्भवती हो गई, निश्चित समय के उपरांत इनको पुत्र रत्न पैदा हो गया, बेटे का नाम रखा हीरालाल। छोटे बच्चों को कोई हीरालाल नहीं बोले, सभी बोले ओ हीरा-हीरा। पुजारी को पता लगा कि सेठजी को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई, बडे खुश हुये कि अब तो जरूर हीरे का हार चढेगा। तीन महीने का बालक हो गया, पत्नी ने कहा चलो जी मन्दिर में पूजा कर आएं, मनौती तो पूरी हो गयी, सेठजी बोले रूक अभी बालक को थोड़ा और बड़ा होने दे।

दो साल का हो गया, तो पति ने कहा पाँच वर्ष का हो जाएगा तो मुण्डन के बाद चलेंगे, बालक पाँच वर्ष का हो गया तो पत्नी ने फिर कहा, हमने हनुमानजी के वहाँ जो बोला हुआ है वह पूरा करना है, देवता के सामने मनौती जो रखी जाती है वह पूरी की जाती है अन्यथा अशिष्ट हो सकता है, चलिए न अपने यहाँ कमी किस बात की है, इसी बालक के नाम पर एक हीरे का हार चढाने को कहा है तो वह चढा देते हैं, आदमी तो आदमी है जब तक काम पूरा नहीं होता प्रार्थना के लिए भाव होते हैं, काम पूरा होते ही प्रार्थना के और भाव हो जाते हैं।

पत्नि ने बहुत आग्रह किया तो एक दिन तय हो गया, अच्छा चलो हनुमानजी को हीरे का हार चढाएं, पुजारी को भी समाचार मिल गया, सेठजी आ रहे हैं हीरे का हार चढाने, मन्दिर धोया, चोला चढाया, दीपक और अगरबत्ती जलाई, अब पूजा सब हो गयी, माथा टेक दिया बार-बार पत्नि भी देखे पुजारी भी देखे सेठजी के हीरो का हार, पत्नि ने कहा हीरे का हार चढाओ, लडके के गले में सुन्दर फूलों का हार पहनाकर ले गए थे और वह उतार कर हनुमानजी के चरणों में चढा दिया, बोले यह लो हीरे का हार, बोले क्या मतलब?

बोले हीरा ही तो है लड़का और इसी का हार तो मैं चढा रहा हूँ, गले की माला चढाकर चले गये, भजन में चतुराई, जीवन में चतुराई, दूसरे का पैसा कैसे अपनी जेब में आए इसी चतुराई में हम डूबे है, जो मन के विकारों को छोड़कर भजन में लगा दे वही मन चतुर है, हम लोग उसी को चतुर मानते हैं जो जैसे-तैसे पैसा कमा ले, हम उदाहरण देते हैं देखो वह कितना चतुर व समझदार हैं कहाँ से कहाँ पहुँच गया।

भक्त को हमेशा अपने गुरुम्हाराजी के प्रति सेवा भाव से केन्द्रित होना चाहिय और वह भी छह कपट से रहित, अनुशासन युक्त!
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