मन चंगा तो कठौती गंगा

‼️ *मन चंगा तो कठौती गंगा…..*‼️

एक बार भक्तिमती मीराबाई को किसी ने ताना मारा, *”मीरा! तू तो राज रानी है। महलों में रहने वाली, मिष्ठान-पकवान खाने वाली और तेरे गुरु झोपड़ी में रहते हैं। उन्हें तो एक वक्त की रोटी भी ठीक से नहीं मिलती”।*
मीरा से यह कैसे सहन होता! मीरा ने पालकी मंँगवाई और गुरुदर्शन के लिए चल पड़ी। मायके से कन्यादान में मिला एक हीरा उसने गाँठ में बांँध लिया।

रैदास जी की कुटिया जगह-जगह से टूटी हुई थी। वे एक हाथ में सुई और दूसरे में एक फटी पुरानी जूती लेकर बैठे थे।पास ही एक कटौती पड़ी हुई थी।

*हाथ से काम और मुख में नाम चल रहा था।*

ऐसे महापुरुष कभी बाहर से चाहे साधन संम्पदा विहीन दिखें पर *अन्दर की परम सम्पदा के धनी होते हैं और बाहर की धनसम्पदा उनके चरणों की दासी होती है। यह संतों का विलक्षण ऐश्वर्य है।*

मीरा ने गुरु चरणों में वह बहूमूल्य हीरा रखते हुए प्रणाम किया।उनके नेत्रों में श्रद्धा-प्रेम के आंँसू उमड़ रहे थे।

वह हाथ जोड़कर निवेदन कर लगी। “गुरुजी!लोग मुझे ताने मारते हैं कि *मीरा तू तो महल में रहती है और तेरे गुरु को रहने के लिए अच्छी कुटिया भी नहीं है। गुरुदेव मुझसे यह सुना नहीं जाता। अपने चरणों में एक दासी की तुच्छ भेंट स्वीकार कीजिए। 5इस झोपड़ी और कटौती को छोड़कर तीर्थ यात्रा कीजिए और….”*

और आगे संत रैदास जी ने मीरा को बोलने मौका नहीं दिया।

वे बोले- *”गिरधर नागर की सेविका होकर तुम ऐसा कहती हो! मुझे इसकी जरूरत नहीं है!*

*बेटी! मेरे लिए इस कटौती का पानी ही गंगाजी है,यह झोपड़ी मेरी काशी है”।*

इतना कहकर रैदास जी ने *कठौती में से एक अंजलि जल लेकर उसकी धार की तो अनेकों सच्चे मोती जमीन पर बिखर गये। मीरा चकित-सी देखती रह गई।*

सच्चे महान पुरुष मानव को *बाहरी धन-सम्पदा में ना उलझा कर सही ज्ञान मार्ग बताते हैं।*

*ज्ञान मार्ग ही सच्चा मार्ग है।बाकी सब असार है। सब यही छूट जायेगा।*

इसीलिए *समय के महापुरुष अभ्यास करने के लिए, भजन-सुमिरण करने के लिए कहते हैं!*

*आज तक सच्चे सद्गुरु की कृपा का अगर आनंद लिया तो उसका एक मात्र रास्ता है – उनके द्वारा दिए ज्ञान का सतत अभ्यास करना!*
अन्यथा –
*भक्ति भाव भादो नदी,*
*निश दिन चले इतराए!*
*सरिता सोय सराहिए,*
*जो जेठ मास ठहराए!*

*अभ्यास के द्वारा ही हम धीर गम्भीर और गरिमामय सकून भरे पलों का रसास्वादन कर सकते हैं!*

*आपका जीवन आनंदमय बना रहे!*




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