मानव अपने मन से ही परेशान….

मानव जीवन का आज अभ्यास ऐसा हो गया है कि उसने अपने भीतर ही महाभारत का मैदान तैयार करके दुश्मनों की सेना खड़ी कर ली है।
वह हर पल खुद से ही युद्ध लड़ रहा है।
जैसे ही सुबह आँख खुलती है, भीतर से दुश्मन सामने खड़े मिलते हैं।
बहुत सारे लोग तो आंँख खुलने से पहले करवट लेने के साथ ही अशान्त हो जाते हैं।
इसलिए आत्मज्ञानी को सच्चे सन्तों से प्राणों के भीतर की शक्ति को पहचान कर शान्ति के अनुभव का अभ्यास पर अधिक बल देना है।

समय के महापुरुष कहते हैं कि
सत्य कभी मर नहीं सकता और असत्य कभी जीवित नहीं रहता।
प्राणों के भीतर की शक्ति सत्य और अमर है जो आणविक शक्ति से भी अधिक शक्तिशाली है।
शान्ति बाहर नहीं है, शान्ति तुम्हारे भीतर है।
मानवता वही है जो तुम अपने लिए चाहते हो, वही दूसरों के प्रति करो।

समुद्र का स्वाद चखने के लिए सारे समुद्र को पीने की आवश्यकता नहीं है!
इसी प्रकार -शान्ति का अनुभव करने के लिए वेद, शास्त्र, पुराण, कुरान, ग्रंथ, बाईबल इत्यादि का जानकार होना भी आवश्यक नहीं है।
इन अनवरत आती जाती स्वांसों के लिए कैसा शास्त्रार्थ?
सभी अपने-अपने धर्मों का पालन करते हुए और सम्पूर्ण जिम्मेदारी निभाते हुए शान्ति का अनुभव कर सकते हैं।
बस, हर रोज निरन्तर अपनी दिनचर्या से कुछ समय लगभग एक घंटा भजन-अभ्यास के लिए निकालना होगा।
निरन्तर लम्बे अभ्यास से आने वाले विचारों का प्रवाह रूक जाता है और फिर ऐसा पल आता है कि मन नाम-सुमिरण के साथ एकाकार हो जाता है और चित्त हृदय की तरफ उन्मुख हो जाता है।
तभी प्राणों के भीतर की उस अविनाशी शक्ति की पहचान से स्वयं का बोध हो जाता है और हृदय में विराजमान उस अविनाशी के सानिध्य में शान्ति के अनुभव से मनुष्य जीवन सफल हो जाता है।



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