मौन और मुस्कान की सफलता

मौन और मुस्कान की सफलता

मैं मौमु सेठ के बारे में बहुत तो नहीं जानता! पर इतना तो जानता ही हूँ कि वह पहले से ही सेठ नहीं था। वह तो एक गरीब आदमी था! झन्नु उसका नाम था।
झन्नु हमेशा झन्नाया रहता। बिना बात का झगड़ा करना तो उसके स्वभाव में ही था। किसी ने पूछ लिया कि झन्नु भाई टाईम क्या हुआ होगा? तो झन्नु झनझना जाता और कहता- यह घड़ी तेरे बाप ने ले कर दी है? यहाँ टाईम पहले ही खराब चल रहा है, तूं और आ गया मेरा टाईम खाने। भाग यहाँ से!

अब ऐसे आदमी के साथ कौन काम करे? न उसके पास कोई ग्राहक टिकता, न नौकर। यही कारण था कि वो जो भी काम करता था, उसमें उसे नुकसान ही होता था।

कहते हैं कि एक संत एक बार झन्नु के पास से गुजरे। वे कभी किसी से कुछ माँगते नहीं थे!
पर न मालूम उनके मन में क्या आया, सीधे झन्नु के सामने आ खड़े हुए। बोले- बेटा! संत को भोजन करा देगा?

अब झन्नु तो झन्नु ही ठहरा। झन्ना कर बोला- मैं खुद भूखे मर रहा हूँ, तूं और आ गया। चल चल अपना काम कर।

संत मुस्कुराए और बोले- मैं तो अपना काम ही कर रहा हूँ और वह भी बिल्कुल सही से कर रहा हूँ। असल में, तुम ही अपना काम सही से नहीं कर रहे हो!

झन्नु झटका खा गया। उसे ऐसे उत्तर की उम्मीद नहीं थी। पूछने लगा- क्या मतलब?

संत उसके पास बैठ गए। बोले- बेटा! मालूम है तुम्हारा नाम झन्नु क्यों है? क्योंकि झन्नाया रहना और नुकसान उठाना, यही तुम करते आए हो।
अगर तुम अपना स्वभाव बदल लो, तो तुम्हारा जीवन बदल सकता है। मेरी बात मानो तो चाहे कुछ भी हो जाए, खुश रहा करो।

झन्नु बोला- महाराज! खुश कैसे रहूँ? मेरा तो नसीब ही खराब है।

संत बोले- खुशनसीब वह नहीं है- जिसका नसीब अच्छा है!
बल्कि खुशनसीब वह है जो अपने नसीब से खुश है।
तुम खुश रहने लगो तो नसीब बदल भी सकता है।

तुम नहीं जानते कि कामयाब आदमी खुश रहे न रहे, पर खुश रहने वाला एक ना एक दिन कामयाब जरूर होता है।

झन्नु बोला- महाराज! दुनिया बड़ी खराब है! और मेरा ढंग ही ऐसा है कि मुझसे झूठ बोला नहीं जाता।

संत बोले- झन्नु! झूठ नहीं बोल सकते पर चुप तो रह सकते हो?

तुम दो सूत्र पकड़ लो और वह है – मौन और मुस्कान।
मुस्कान समस्या का समाधान कर देती है।
मौन समस्या का बंद कर देता है।

चाहे जो भी हो जाए – तुम चुप रहा करो और मुस्कुराया करो। फिर देखो क्या होगा?

झन्नु को संत की बात जंच गई और भगवान की कृपा से उसका स्वभाव और भाग्य दोनों बदल गए।
फल क्या मिला? समय बदल गया, झन्नु मौन और मुस्कान के सहारे चलते चलते मौमु सेठ बन गया।

यह बात सभी को सोचनी चाहिय कि आप टेलिविज़न नहीं हैं जो आपका रिमोट दूसरे के हाथ रहे।
वह चाहे तो आप हंसें! और वह चाहे तो रोएँ।
हमारा चेहरा हमारा है। यह हंसेगा या रोएगा, इसका निर्णय दूसरा क्यों करे?
अपने जीवन में अभी निर्णय करो, कि सचाहे कुछ भी क्यों न हो जाए, हम सदा मुस्कुराएँगे।
तब दुनिया में कोई भी आपके चेहरे की मुस्कान न छीन पाएगा।

याद रहे-
“गुजरी हुई जिंदगी को कभी याद ना कर,
तकदीर में जो नहीं तो फ़रियाद ना कर।
जो होना होगा वो होकर ही रहेगा!
कल की फिक्र में, आज हंसी बर्बाद ना कर॥”

इसलिय
सदैव प्रसन्न रहिये और अधिकतर मौन धारण कीजिय!
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।

आपका आज का दिन मंगलमय हो और आपको सपरिवार लोहड़ी, मकरसंक्रांति, पोंगल और बिहु आदि पर्वों की हार्दिक शुभकामनायें।
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