राजा का जन्मदिन

*राजा का जन्मदिन*

एक बार एक राजा सुबह घूमने निकला तो उसने तय किया कि *वह आज अपने जन्म दिन पर रास्ते में मिलने वाले पहले व्यक्ति को पूरी तरह खुश व संतुष्ट करेगा।*
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उसे एक भिखारी मिला।

भिखारी ने राजा से भीख मांगी *तो राजा ने भिखारी की तरफ एक तांबे का सिक्का उछाल दिया।*

वह सिक्का भिखारी के हाथ से छूट कर *नाली में जा गिरा।*

भिखारी नाली में हाथ डाल तांबे का सिक्का ढूंढ़ने लगा।
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राजा ने उसे बुला कर दूसरा *तांबे का सिक्का दिया।*

भिखारी ने खुश होकर वह सिक्का अपनी जेब में रख लिया और *वापस जाकर नाली में गिरा सिक्का ढूंढ़ने लगा!*
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राजा को लगा की भिखारी बहुत गरीब है। उसने भिखारी को फिर *चांदी का एक सिक्का दिया।*
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भिखारी राजा की जय जयकार करता फिर *नाली में सिक्का ढूंढ़ने लगा।*
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राजा ने अब भिखारी को एक *सोने का सिक्का दिया।*
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भिखारी खुशी से झूम उठा और *वापस भाग कर अपना हाथ नाली की तरफ बढ़ाने लगा।*
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राजा को बहुत खराब लगा। लेकिन उसे खुद से तय की गयी बात याद आ गयी कि *सबसे पहले मिलने वाले व्यक्ति को आज खुश एवं संतुष्ट करना है।*
उसने भिखारी को बुलाया और कहा कि *मैं तुम्हें अपना आधा राज-पाट देता हूं, अब तो खुश व संतुष्ट हो?*
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भिखारी बोला, *महाराज, मैं खुश और संतुष्ट तभी हो सकूंगा जब नाली में गिरा तांबे का सिक्का मुझे मिल जायेगा!*
कमोवेश हमारा हाल भी उस भिखारी जैसा ही है।

*हमें जब समय के सतगुरू ने अपनी अहेतुकी कृपा से अपनाया, ज्ञान दिया और अभ्यास करके अंदर के खजाने का आनन्द लेने के लिए बतलाया पर हम बेकार की बातों में अपनी अनमोल स्वासों को गवा रहे हैं!*

उस आंतरिक आनन्द को भूलकर उस भिखारी की तरह संसार रूपी नाली में तांबे के सिक्के निकालने के लिए जीवन गंवाते जा रहे हैं!

एक एक स्वास हाथ से निकल रहे हैं! मौत सामने खड़ी है तो फिर गफलत क्यों?
*खुद के लिए खुद सोचें! कम से कम अपने इस जीवन के साथ न्याय करें!*




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