लक्ष्मण जी की आनंद यात्रा……

भगवान श्रीराम ने एक बार पूछा कि लक्ष्मण तुमने अयोध्या से लेकर लंका तक की यात्रा की है परन्तु उस यात्रा में सबसे अधिक आनंद तुम्हें कब आया?

लक्ष्मणजी ने कहा कि भैया, मेरी सबसे बढ़िया यात्रा तो लंका में हुई और वह भी तब हुई जब मेघनाद ने मुझे बाण मार दिया!

प्रभु ने हंसकर कहा कि लक्ष्मण तब तो तुम मूर्छित हो गये थे, उस समय तुम्हारी यात्रा कहां हुई थी?

तब लक्ष्मणजी ने कहा कि प्रभु उसी समय तो सर्वाधिक सुखद यात्रा हुई!

लक्ष्मणजी का तात्पर्य था कि अन्य जितनी यात्राएं हुईं उन्हें तो मैंने चलकर पूरा किया!

लेकिन इस यात्रा की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि मूर्छित होने के बाद भी हनुमानजी ने मुझे गोद में उठा लिया और आपकी गोद में पहुंचा दिया।

प्रभु, सन्त की गोद से लेकर ईश्वर की गोद तक की जो यात्रा थी जिसमें रंचमात्र कोई पुरुषार्थ नहीं था!
उस यात्रा में जितनी धन्यता की अनुभूति हमें हुई वह तो सर्वथा वाणी से परे है!

लक्ष्मणजी ने कहा _प्रभु, शेष के रूप में आपको गोदी में सुलाने का सुख तो मैंने देखा था पर आपकी गोदी में सोने का सुख तो सन्त की प्रेरणा से ही मुझे प्राप्त हुआ!

इसलिए मेरे हिसाब से तो सबसे महान वही यात्रा थी जो हनुमान जी की गोद से आपकी गोदी तक हुई थी!

लक्षमन की बात सुनकर भगवान श्रीराघवेन्द्र ने लक्ष्मण को हृदय से लगा लिया !!_

सचमुच, आन्तरिक यात्रा की अनुभूति का आनंद ही विलक्षण होता है!




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