श्रद्धा भाव के पुष्प

एक बार किसी गांव में महात्मा बुद्घ का सत्संग हुआ। सब इस होड़ में लग गए कि क्या भेंट करें?

सुदास नाम का एक मोची था। उसने देखा कि मेरे घर के बाहर के तालाब में एक कमल🪷 खिला है। उसकी इच्छा हुई कि आज नगर में महात्मा बुद्घ आए हैं। सब लोग तो उधर ही गए हैं, तो आज यह फूल बेचकर गुजारा कर लेंगे। वह तालाब के अंदर कीचड़ में घुस गया।  कमल के फूल को लेकर आया, केले के पत्ते का दोना बनाया और उसके अंदर कमल का फूल रख दिया। पानी की कुछ बूंदे कमल पर पड़ी हुई थी इसलिए वह बहुत ही सुन्दर दिखाई दे रहा था।

एक सेठ आया और बोला – इस फूल के हम आपको दो चांदी के रुपये दे सकते हैं। अब उसने सोचा एक दो आने का फूल। इसके दो रुपये दिये जा रहे हैं। वह आश्चर्य में पड़ गया।

इतनी देर में नगर सेठ आया। उसने कहा – भाई! फूल बहुत अच्छा है, यह फूल हमें दे दो। हम इसके दस चांदी के सिक्के दे सकते हैं।

मोची ने सोचा इतना कीमती है यह फूल!

नगर सेठ ने कहा- मेरी इच्छा है कि मैं महात्मा बुद्घ के चरणों में यह फूल रखूं। इसलिए इसकी इतनी कीमत दे रहा हूं।

इतनी देर में उस राज्य का मंत्री अपने वाहन पर बैठा हुआ आ गया और कहने लगा- क्या बात है? कैसी भीड़ लगी हुई है।
अब लोग कुछ बताते उससे पहले उसका ध्यान उस फूल की तरफ गया।  उसने पूछा- यह फूल बेचोगे? हम इसके सौ सिक्के दे सकते हैं। क्योंकि महात्मा बुद्घ आए हुए हैं। जब हम यह फूल लेकर जाएंगे तो सारे गांव में तो चर्चा होगी कि महात्मा बुद्घ ने केवल मंत्री का ही फूल स्वीकार किया। इसलिए हमारी इच्छा है कि यह फूल हम भेंट करें।

थोड़ी देर के बाद राजा ने भीड़ को देखा, देखने के बाद मंत्री से पूछा कि क्या बात है? उसने बताया कि फूल का सौदा चल रहा है।

राजा ने देखते ही कहा इसको हमारी तरफ से एक हजार चांदी के सिक्के भेंट करना। ‘यह फूल हम लेना चाहते हैं।

सुदास ने कहा – क्षमा करें महाराज, यह फूल मैं बेचना ही नहीं चाहता।
जब महात्मा बुद्घ के चरणों में सब लोग कुछ भेंट करने के लिए पहुंच रहें हैं तो ये फूल इस गरीब की तरफ से आज उनके चरणों में भेंट होगा।

राजा बोला – देख लो! एक हजार चांदी के सिक्कों से तुम्हारी पीढि़यां तर सकती हैं।

सुदास ने कहा, मैंने तो आज तक राजाओं की संपत्ति से किसी को तरते नहीं देखा, लेकिन महान पुरुषों के आशीर्वाद से लोगों को जरुर तरते हुए देखा है।

राजा मुस्कुराया और बोला, तेरी मर्जी तू ही भेंट कर ले।

बहुत जल्दी चर्चा महात्मा बुद्घ के कानों तक भी पहुंच गई कि आज कोई व्यक्ति फूल लेकर आ रहा है जिसकी कीमत बहुत लगी है।

सुदास फूल लेकर जैसे ही पहुंचा तो उसकी आंखों में आंसू बरसने लगे। कुछ बूंदे उसके आंसुओं के रूप में उस कमल पर ठिठक गईं। सुदास घुटनों के बल बैठ गया।

रोते हुए उसने कहा – सबने बहुत-कीमती चीजें आपके चरणों में भेंट की होंगी। लेकिन इस गरीब के पास यह कमल का फूल और जन्म-जन्मान्तरों के पाप जो मैंने किए हैं, उनके आंसू आंखों मे भरे पड़े हैं; आज आपके चरणों में चढ़ाने आया हूं। कृपया कर मुझे मुक्ति का मार्ग बताएं।

महात्मा बुद्घ ने अपने शिष्य आनन्द को बुलाया और कहा- देख रहे हो आनन्द! हजारों साल में भी कोई राजा इतना नहीं कमा पाया, जितना इस गरीब सुदास ने आज एक पल में ही कमा लिया। इसका पुण्य श्रेष्ठ हो गया। आज राजाओं के मुकुट हार गए और एक गरीब का फूल जीत गया। इसे केवल एक फूल न समझना, इसमें श्रद्घा का खजाना छिपा पड़ा है।

महात्मा बुद्ध ने उसे ज्ञान दिया और उसके बाद वह भिक्षु बन गया।

सचमुच, यह संदेश कितना साफ है कि –
भाव का भूखा हूँ मैं और भाव ही इक सार है!
भाव से मुझको भजे तो भाव से बेडा पार है!

भाव बिन सर्वस्व भी दे तो मैं कभी लेता नहीं!
भाव से एक फूल भी दे, तो भव से बेडा पार है!

भाव जिस जन में नहीं, उसकी मुझे चिन्ता नहीं !
भाव वाले भक्त का भरपूर मुझ पर भार है!

टेर भक्तिभाव की करती मुझे लाचार है!
इसी लिय इस भूमि पर होता मेरा अवतार है!

सच ही कहा कहते हैं कि गुरु बिना गति नहीं।

सर यही है कि समय के सद्गुरु की ऊँगली पकड़ लो, तो यह जीवन निश्चित रूप से सफल हो जायेगा।
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