श्री कृष्ण की वंशी अद्भुत

*श्री कृष्ण की वंशी अद्भुत*

भारत के महान संत स्वामी विवेकानन्द जब शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने गए तो वहां किसी ने उनसे प्रश्न किया कि *”स्वामी जी, कहते हैं कि श्री कृष्ण की वंशी सुनकर गाएं दौड़ी चली आती थी। क्या यह संभव है?*”
स्वामी जी बोले, *”इसका जवाब फिर किसी दिन दूंगा।”*

एक दिन स्वामी जी सभा हाल में भाषण दे रहे थे। *जनता मंत्रमुग्ध हो सुन रही थी। स्वामी जी अचानक चुप हो गए व चुपचाप वहां से चले पड़े।*

सभी बिना कुछ बोले *उनके पीछे-पीछे सारे श्रोतागण भी चल पड़े ताकि भाषण का बाकी अंश सुन सकें।*

स्वामी जी एक ऊंची जगह खड़े हो गए और बोले, *आप में से किसी ने एक दिन पूछा था कि क्या श्री कृष्ण की वंशी सुनकर गाएं दौड़ी चली आती थीं?*

इसका जवाब आज दे रहा हूं।

*जब मुझ जैसे साधारण से मानव का अधूरा भाषण सुनने के लिए आप सब यहां तक आ गये!*
तो फिर *श्री कृष्ण जी तो सोलह कला संपूर्ण थे। उनकी वंशी सुनकर गायों का दौड़े चले आना तो स्वाभाविक ही था!इस में हो सकता है क्या?”*

इस प्रकार *उन सब श्रोताओं का संदेह दूर हो गया और श्रद्धा से सब का सिर झुक गया।*

यह वास्तविकता है कि महापुरुषों के प्रेम और विश्वास में वो ताकत है कि वो असंभव को भी सम्भव कर सकते हैं!

कहा भी है –
*मूकं करोति वाचालं, पङ्गुं लङ्घयते गिरिं।*
*यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम् ॥*
यानी जिनकी कृपा से गूंगे बोलने लगते हैं! लंगड़े पहाड़ों को पार कर लेते हैं! उन परम आनंद स्वरुप श्रीमाधव की मैं वंदना करता हूँ!

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