संगत का असर

संगत का असर

एक बार एक शिकारी शिकार करने गया, शिकार नहीं मिला! थकान हुई और एक वृक्ष के नीचे आकर सो गया। पवन का वेग अधिक था! तो डालियों के यहाँ-वहाँ हिलने के कारण वृक्ष की छाया कभी कम-ज्यादा हो रही थी!

वहीं से एक अति सुन्दर हंस उड़कर जा रहा था! उस हंस ने देखा कि वह व्यक्ति बेचारा परेशान हो रहा हैं, धूप उसके मुँह पर आ रही हैं तो ठीक से सो नहीं पा रहा हैं तो वह हंस पेड़ की डाली पर अपने पंख खोल कर बैठ गया ताकि उसकी छाँव में वह शिकारी आराम से सोयें।

जब वह सो रहा था तभी एक कौआ आकर उसी डाली पर बैठा, * इधर-उधर देखा और बिना कुछ सोचे-समझे शिकारी के ऊपर अपना मल विसर्जन कर वहाँ से उड़ गया।

तभी शिकारी उठ गया और गुस्से से यहाँ-वहाँ देखने लगा और उसकी नज़र हंस पर पड़ी और उसने तुरंत धनुष बाण निकाला और उस हंस को मार दिया। हंस नीचे गिरा और मरते-मरते हंस ने कहा:- मैं तो आपकी सेवा कर रहा था! मैं तो आपको छाँव दे रहा था और आपने मुझे ही मार दिया? इसमें मेरा क्या दोष?

तब समय उस शिकारी ने कहा: यद्यपि आपका जन्म उच्च परिवार में हुआ हो आपकी सोच भी आपके तन की तरह ही सुंदर हैं! आपके संस्कार शुद्ध हैं! यहाँ तक की आप अच्छे इरादे से मेरे लिए पेड़ की डाली पर बैठ मेरी सेवा कर रहे थे लेकिन आपसे एक गलती हो गयी कि जब आपके पास कौआ आकर बैठा तो आपको उसी समय उड़ जाना चाहिए था।

उस दुष्ट कौए के साथ एक घड़ी की संगत ने ही आपको मृत्यु के द्वार पर पहुंचाया हैं ।

संसार में संगति का सदैव ध्यान रखना चाहिये। जो मन, बुद्धि और कार्य से परमहंस हैं उन्हें कौओं की सभा से दूरी बनायें रखना चाहिये!
कहते हैं कि व्यक्ति योगियों के साथ योगी और भोगियों के साथ भोगी बन जाता है।
व्यक्ति को जीवन के अंतिम क्षणों में गति भी उसकी संगति के अनुसार ही मिलती है। संगति का जीवन में बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है। संगति से मनुष्य जहां महान बनता है, वहीं बुरी संगति उसका पतन भी करती है।

छत्रपति शिवाजी बहादुर बने। ऐसा इसलिए, क्योंकि उनकी मां ने उन्हें वैसा वातावरण दिया।
नेपोलियन जीवन भर बिल्ली से डरते रहे, क्योंकि बचपन में बिल्ली ने उन्हें डरा दिया था।
माता-पिता के साथ-साथ बच्चे पर स्कूली शिक्षा का गहरा प्रभाव पड़ता है। कई बार व्यक्ति पढ़ाई-लिखाई करके उच्च पदों पर पहुंच तो जाता है, लेकिन संस्कारों के अभाव में, सही संगति न मिलने के कारण वह हिटलर जैसा तानाशाह बन जाता है।
सदाचरण के पालन से चाहे तो व्यक्ति ऐसा बहुत कुछ कर सकता है, जिससे उसका जीवन सार्थक हो सके, परंतु सदाचरण का पालन न करने से वह अंतत: खोखला हो जाता है।

हो सकता है कि चोरी-बेईमानी आदि करके वह धन कमा ले, कुछ समय के लिए पद-प्रतिष्ठा अर्जित कर ले, लेकिन उसका अंत बुरा ही होता है।
सत्संगति का, अच्छे विचारों का बीज बच्चे के मन में बचपन में ही बो देना चाहिए।
व्यक्ति की अच्छी संगति से उसके स्वयं का परिवार तो अच्छा होता ही है, साथ ही उसका प्रभाव समाज व राष्ट्र पर भी गहरा पड़ता है।

जहां अच्छी संगति व्यक्ति को कुछ नया करते रहने की समय-समय पर प्रेरणा देती है, वहीं बुरी संगति से व्यक्ति गहरे अंधकूप में गिर जाता है।

अच्छी संगति व्यक्ति का मन व चित्त निर्मल करती है। उसकी प्रसन्नता बनी रहती है। दिन-प्रतिदिन उसके व्यक्तित्व में निखार आता है।
संगति कैसी है, इस बात से व्यक्ति के व्यक्तित्व का पता चलता है। जीवन का हर कदम मायने रखता है।

इसलिए उसे फूंक-फूंककर आगे बढ़ना चाहिए।

अक्सर ऐसा देखने में आता है कि कुछ बच्चे स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई में बहुत अच्छे होते हैं, लेकिन बुरी संगति में फंसकर नशा या मद्यपान करने लगते हैं। उनका जीवन बर्बाद हो जाता है। वे झूठी चकाचौंध में फंसकर स्वयं की वास्तविक शक्ति को नहीं पहचानते हैं। कई बार सत्संगति न मिलने के कारण उपयुक्त वातावरण न होने के चलते बच्चा अपनी प्रतिभा का विकास नहीं कर पाता, जबकि सत्संगति से उसमें अटूट विश्वास जगता है और वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है।

🙏🏻 सुप्रभात🙏🏼




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