संसार में जितने जीव हैं- सबके शरीर के अंदर आत्मा है! जिसके कारण जीव सजीव और क्रियाशील है।

भारतीय वेदान्त ज्ञान बतलाता है कि केवल मनुष्य शरीर से ही आत्मा को जाना जा सकता है और आत्मा को जानकर मनुष्य जन्म-मरण के चक्र से छूट जाता है, उसके समस्त विषय- विकार मिट जाते हैं, समस्त क्लेश मिट जाते हैं और जीते जी स्वर्ग की अनुभूति करने लगता है!

वास्तव में यही है – मानव जीवन मिलने का परम उद्देश्य।

किसी सुभाषितकार ने बड़ा अच्छा कहा है-
पढ़े छहो शास्त्र अठारह पुराण पढ़े,
वेद उपवेद आदि अंत कोई छाना है।
गीता रामायण स्रुति स्मृति पढ़े,
सांख्य न्याय योग आदि दर्शन भी जाना है।।

जाना है बनाना छन्द सोरठा चौपाई को,
जाना ध्रुपद का राग और भैरवी का गाना है।
इतना जो जाना सोई खाक धूल छाना है।।

जाना है सोई जिन आतम पहिचाना है।।

ध्यान देने की बात है कि आदि काल से मानव मात्र के लिय यह आत्मज्ञान वाला संदेश आज भी प्रासंगिक एवम् अनुकरणीय है!

हम महापुरुषों के जन्म दिन तो मनाते हैं और उन्हें मानते भी हैं लेकिन जो वह कहते है उसे नहीं मानते! उनके संघर्षों को आत्मसात नहीं करते और ना ही उनके संदेशों का पालन करते हैं!

जरा सोचें, यह कहाँ तक सही है?
कम से कम आज जन्माष्टमी के दिन जब सारी दुनिया श्री कृष्ण का जन्म दिन मना रही है –
क्या कभी किसी ने उनको जन्म देने वाली माता देवकी के दर्द को महसूस किया होगा कि किस प्रकार वह अपने सगे भाई कंस के द्वारा प्रताड़ित की गयी और वह भी तब, जब वह समय के महापुरुष श्री कृष्ण की जन्मदात्री कहलाती हैं! शायद नहीं!

क्या कभी किसी ने विचार किया कि श्री कृष्ण जी ने संसय-युक्त मानव को क्या संदेश दिया? जो गीता के रूप में आज भी मौजूद है!

क्या हमने भी अपने आप को अर्जुन-कृष्ण सम्बाद में समस्याओं से घिरे अर्जुन की तरह कनफूज होने पर – समय के महापुरुष की खोज करके आत्मज्ञान प्राप्त करने की दिशा में कदम बढाया?

महापुरुषों का संदेश साफ़ है –
नाना शास्त्र पठेन लोके नाना दैवत पूजनम!
आत्म ज्ञान बिना पार्थ सर्व कर्म निरर्थकम्!!

तो देर किस बात की? और इंतज़ार किसका?
अज्ञानता की मोह निद्रा से उठकर ज्ञान के आलोक में अर्जुन की तरह वह विधि सीखिय जिसमें कृष्ण ने बतलाया कि अर्जुन, तू युद्ध करते हुए सुमिरन कर!

खुशी की बात यह है कि आज भी आत्मबोध करने वाले, मनुष्य के जीवन में जीते जी शांति का बोध कराने वाले सद्गुरु मौजूद हैं!

बस, जरूरत हमारे चाहत की है कि हमारे अन्दर वह ज्ञान पाने की प्रबल जिज्ञासा है या नहीं!

हमेशा से समय के सच्चे संत महापुरुष बतलाते हैं कि सदाचार का पालन करते हुए समय के सदगुरु के पास जाकर आत्मज्ञान प्राप्त करना चाहिय! यही मानव जीवन की उपादेयता है।

तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः।।4.34।।

शायद गीता का यह संदेश मनुष्य के कल्याण के लिय पर्याप्त है – यदि वह अनुशरण करना चाहे!

आप सबको पुनश्च श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभ कामनाएं!
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