समय के सद्गुरु में पूर्ण समर्पण से भटकाव खत्म होता है!

समय के सद्गुरु में पूर्ण समर्पण से भटकाव खत्म होता है!

एक बगीचा था। नाना प्रकार के पुष्प उसमें खिले हुए थे और एक भौंरा एक पुष्प से दूसरे पुष्प पर बैठता था।

परंतु एक चंपा का जो विशाल वृक्ष था- उस चंपा के बड़े फूल में बड़ी सुंदरता और खूशबू होती है, लेकिन वह भौंरा उस बड़े चंपा के फूल पर नहीं जाता था।

तो एक महात्मा जी उस बागवानी में, उपवन में आए और यह सब कुछ देखकर के चंपा से पूछने लगे!

महात्मा जी ने अपना प्रश्न किया कि ये चंपा के फूल! तेरे में रूप भी है, सुंदरता भी है, खूशबू भी है और आकार भी तेरा बहुत बड़ा है, अन्य पुष्पों की तुलना में, परंतु क्या कारण है कि यह भौंरा तेरे पास नहीं आ रहा है!

तो चंपा ने महात्मा जी को जवाब दिया कि –
मुझमें तीन गुण रूप रंग और सुबास!
जगह जगह के मीत को कौन बिठावे पास!

आपने ठीक फरमाया कि मेरे में तीनों गुण विद्यमान हैं परंतु यह दर-दर का भटकने वाला भौंरा कभी किसी पुष्प पर जाता है, कभी किसी पुष्प पर जाता इसका समर्पण नहीं है किसी चीज के प्रति!

इसीलिए कहा है कि A man can become jack of all trades but Master of Non कि आदमी जो है बहुत कुछ सीख सकता है पर किसी एक चीज के ऊपर पूर्णतः अधिकार प्राप्त नहीं किया तो उसे असली चीज से वंचित होना पड़ता है!

अतः इसीलिए भक्ति के अंदर तद्रुपता और पूर्णतः समर्पण ही भक्ति की सफलता है।

इसलिए हर मानव परमपिता परमात्मा का एक जीता-जागता मंदिर है।

यह हमारा जो पंच भौतिक शरीर है यह परमात्मा की जीती-जागती मस्जिद है। उसका जीता-जागता गुरुद्वारा है। उसका जीता-जागता मंदिर है और इसके अंदर प्राण रूप में वह परमात्मा हमारे अंदर प्रतिष्ठित है।

पर हम बेखबर हो गए हैं और इधर-उधर भटकते हैं!

संत महापुरुष कहते हैं कि दुनियां के शोर से अपना ध्यान हटाकर अपने अंदर की शक्ति को पहचानो!

वह कैसे पहचानी जाएगी?

जब हमें समय के सच्चे सद्गुरु मिल जाते हैं, उनका मार्गदर्शन मिलता है तो हमारी भटकन समाप्त हो जाती है!




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