एक बढ़ाई (Carpenter) शाम को अपनी दुकान बंद कर घर चला गया।
जब वह चला गया, तो एक ज़हरीला सांप दुकान के अंदर घुस गया। सांप भूखा था। इस आशा में की कुछ खाने को मिल जाए, वह इधर उधर रेंगने लगा।
इसी बीच वो एक कुल्हाड़ी से टकरा गया और थोड़ा सा चोटिल हो गया।
उसे गुस्सा आ गया और बदला लेने के लिए उसने कुल्हाड़ी को डंक मार दिया। सांप का डंक उस धातु की कुल्हाड़ी का क्या बिगाड़ लेगा? उल्टा सांप के मुंह से ही खून निकलने लग गया।
गुस्से और अहंकार से वो सांप पागल हो गया और उस कुल्हाड़ी को मारने के लिए हर संभव कोशिश करने लगा। उसको बहुत दर्द हो रहा था। फिर भी वो उस कुल्हाड़ी के चारो और लिपट गया। फिर क्या हुआ होगा, आप अच्छी तरह से जानते सकते हैं।
अगले दिन जब कारपेंटर ने दरवाजा खोला, तो देखा की कुल्हाड़ी के लिपटा हुआ सांप मरा पड़ा था।
हकीकत यही थी कि वह सांप किसी और की गलती से नहीं मरा हैं। बल्कि उसकी ये हालत खुद की अकड़ और गुस्से के कारण हुई हैं।
इसी प्रकार हमें भी जब गुस्सा आता हैं तो हम दूसरों को नुकसान पहुंचाने का काम करते हैं। लेकिन कुछ समय बीतने के बाद हमें ये अहसास होता हैं कि हमने अपने को दूसरों से और ज्यादा नुकसान पंहुचा दिया हैं।
यह जरुरी नहीं हैं कि हम हर चीज़ पर प्रतिक्रिया (React) करें!
बल्कि एक कदम पीछे हटकर ये सोचे कि क्या इस मामले में प्रतिक्रिया देनी जरुरी है या नहीं!
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