ईर्ष्या, निंदा, घृणा, धोखा से मुक्त मन

श्री हंस जी महाराज जी की अनमोल सीख!

लोग निन्दा करें तो करने दो बल्कि सब लोगों को अपनी तरफ से छुट्टी दे दो!
वे चाहे निन्दा करें, चाहे प्रशंँसा करें! जिसमें लोग राजी हों – करें।

आप सबको छुट्टी दे दो तो आप स्वतः ही मुक्त हो जाओगे।

प्रशंसा में तो मनुष्य फँस जाता है, पर निन्दा में पाप नष्ट होते हैं।
कोई झूठी निन्दा करे तो चुप रहो सफाई भी मत दो।
कोई पूछे तो सत्य बात कह दें।
बिना पूछे लोगों को कुछ भी कहने की जरुरत नहीं।
बिना पूछे सफाई देने का मतलब है सत्य की सफाई देना जो सत्य का अनादर होता है।

भरत जी कहते हैं😘
जानहुँ रामु कुटिल करी मोही, लोग कहउ गुरु साहिब द्रोही।
सीता राम चरण रति मोरें, अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरें।।

दूसरा आदमी हमें खराब समझे तो इसका कोई मूल्य नहीं है
क्योंकि श्री गुरुमहाराज जी किसी दूसरे की गवाही नहीं लेते हैं!
दूसरा आदमी अच्छा कहे तो आप अच्छे हो जाओगे? ऐसा कभी नहीं होगा।

अगर आप स्वयं बुरे हो तो आपको स्वयं पता है और बुरे ही रहोगे।
अगर आप अच्छे हो तो अच्छे ही रहोगे, भले ही पूरी दुनियां बुरी कहे।
लोग निन्दा करें तो भी आनन्द आना चाहिए।

श्री महाराजी जी आगे बतलाते हैं कि –
मेरी निन्दा से यदि किसी को सन्तोष होता है, तो बिना प्रयत्न के ही मेरी उन पर कृपा हो गयी; क्योंकि कल्याण चाहने वाले पुरुष तो दूसरों के सन्तोष के लिए अपने कष्टपूर्वक कमाए हुए धन का भी परित्याग कर देते हैं – मुझे तो कुछ करना ही नहीं पड़ा।

हम पाप नहीं करते, किसी को दुःख नहीं देते, धोखा नहीं देते, फिर भी हमारी निन्दा होती है तो उसमें दुःख नहीं होना चाहिए बल्कि हमें प्रसन्नता होनी चाहिए।
हृदय में बैठे परम सत्ता ईश्वर की तरफ से जो होता है, सब मंँगलमय ही होता है।
इसलिए मन के विरुद्ध कोई बात हो जायें तो उसमें आनन्द मनाना चाहिए क्योंकि उसमें भी परमात्मा की मर्जी छूपी होती है।

सदैव याद रखें कि हर स्वांस खुशियांँ लाता है। हर कठिन परिस्थिति, दूसरों द्वारा झूठी निन्दा, घृणा, धोखा अनुभव लाते हैं।
एक सफल जीवन और हृदय में शान्ति के अनुभव के लिये यह सब जरूरी होते हैं!
लेकिन तुम किसी की निन्दा मत करना और न ही किसी को धोखा देना। बस”नाम-सुमिरण” द्वारा प्रत्येक पल का आनन्द लेते हुए अभ्यास से स्वयं को जानना और शान्ति के अनुभव से मनुष्य जीवन सफल बनाना है।

  • श्री हंस जी महाराज



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