*योग्यता की परख*
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युवक अंकमाल भगवान बुद्ध के सामने उपस्थित हुआ और बोला- “भगवन्! मेरी इच्छा है कि मैं संसार की कुछ सेवा करूं, आप मुझे जहाँ भी भेजना चाहें भेज दें ताकि मैं लोगों को धर्म का रास्ता दिखाऊँ?”
बुद्ध हँसे और बोले- “तात! संसार को कुछ देने के पहले अपने पास कुछ होना आवश्यक है, जाओ पहले अपनी योग्यता बढ़ाओ फिर संसार की भी सेवा करना।“
अंकमाल वहाँ से चल पड़ा और कलाओं के अभ्यास में जुट गया। बाण बनाने से लेकर चित्रकला तक मल्लविद्या से लेकर मल्लाहकारी तक उसने जितनी भी कलायें हो सकती हैं उन सबका उसने 10 वर्ष तक कठोर अभ्यास किया।
अंकमाल की कला-विशारद के रूप में सारे देश में ख्याति फैल गई।
अपनी प्रशंसा से आप प्रसन्न होकर अंकमाल अभिमान पूर्वक लौटा और तथागत की सेवा में जा उपस्थित हुआ। अपनी योग्यता का बखान करते हुये उसने कहा- “भगवन्! अब मैं संसार के प्रत्येक व्यक्ति को कुछ न कुछ सिखा सकता हूँ। अब मैं 24 कलाओं का पंडित हूँ।“
भगवान बुद्ध मुस्कराये और बोले- “अभी तो तुम कलायें सीख कर आये हो परीक्षा दे लो तब उन पर अभिमान करना।“
अगले दिन भगवान बुद्ध एक साधारण नागरिक का वेश बदलकर अंकमाल के पास गये और उसे अकारण खरी-खोटी सुनाने लगे। अंकमाल क्रुद्ध होकर मारने दौड़ा तो बुद्ध वहाँ से मुस्कराते हुये वापस लौट पड़े।
उसी दिन मध्याह्न दो बौद्ध श्रमण वेश बदलकर अंकमाल के समीप जाकर बोले- “आचार्य आपको सम्राट हर्ष ने मन्त्रिपद देने की इच्छा की है क्या आप उसे स्वीकार करेंगे?“
अंकमाल को लोभ आ गया उसने कहा- “हाँ-हाँ अभी चलो।“
दोनों श्रमण भी मुस्करा दिये और चुपचाप लौट आये।
अंकमाल हैरान था- ‘बात क्या है?’
थोड़ी देर पीछे भगवान बुद्ध पुनः उपस्थित हुये। उनके साथ आम्रपाली थीं। अंकमाल जितनी देर तथागत वहाँ रहे आम्रपाली की ही ओर बार-बार देखता रहा। बात समाप्त कर तथागत आश्रम लौटे।
सायंकाल अंकमाल को बुद्ध देव ने पुनः बुलाया और पूछा- “वत्स। क्या तुमने क्रोध, काम और लोभ पर विजय की विद्या भी सीखी है?”
अंकमाल को दिनभर की सब घटनायें याद हो आई। उसने लज्जा से अपना सिर झुका लिया और उस दिन से आत्म-विजय की साधना में संलग्न हो गया।
🙏🙏🏻🙏🏿 सुप्रभात🙏🏼🙏🏾🙏🏽