between birth and death

जन्म और मृत्यु के बीच

मनुष्य खाली हाथ इस संसार में आता है और खाली हाथ ही यहाँ से विदा लेता है। जन्म और मृत्यु के बीच का उसका समय ऐसा होता है जिसमें वह और और पाने के लिए भटकता रहता है। आयु पर्यन्त वह कोल्हू के बैल की तरह ही खटता रहता है। यह दिन-रात का भटकाव उसका सुख-चैन सब छीन लेता है। वह बिना समय व्यर्थ गंवाए संसार में सब कुछ हासिल कर लेना चाहता है।

वह इस दुनिया के सारे भौतिक सुख अपनी झोली में डाल लेने के लिए आतुर रहता है। पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार ही उसे सब मिलता है। मनुष्य इस सत्य को भूल जाना चाहता है या नजरअंदाज करना चाहता है कि भाग्य से ज्यादा और समय से पहले किसी को कुछ नहीं मिलता।

फिर भी हाथ पसारे माँगता रहता है। उसकी एक कामना पूर्ण होती है कि दूसरी के लिए याचना आरंभ हो जाती है। दूसरी के बाद तीसरी, फिर चौथी, पाँचवीं यानी कि यह क्रम चलता रहता है। यदि उसके भाग्य के अनुसार उसकी इच्छा पूरी न हो पाए तो वह उस दाता से नाराज हो जाता है उसे गाली तक दे बैठता है। उस न्यायकारी पर पक्षपात करने का आरोप लगाने से नहीं चूकता।स्वयं को उससे दूर कर लेने की धमकी देता है। हद तो तब होती है जब अपने अहंकार के वशीभूत वह सृष्टि के रचयिता उस स्वामी को रिश्वत देने का प्रयास करता है।

उसे हर उस व्यक्ति से होड़ करनी होती है जिसका भाग्य बलवान है और सब सुविधाओं से संपन्न है। ईश्वर की दया से जिसके पास भौतिक सुख-साधनों की कोई कमी नहीं है।

इस कारण वह कुमार्गगामी हो जाने से परहेज नहीं करता। नीति-अनीति,छल-फरेब, झूठ-सच करने की महारत हासिल कर लेता है।भ्रष्टाचार करना,दूसरों का गला काटना, छीना-झपटी करना,बेईमानी करना,चोरबाजारी करना आदि उसके प्रिय शगल बन जाते हैं। इन समाज विरोधी कार्यों को करते समय वह भूल जाता है कि वह मालिक उसके इन कृत्यों से प्रसन्न नहीं हो रहा।
उसे अच्छा नहीं लगता कि उसके बच्चे ऐसे व्यवहार करने वाले बनें।

इस भौतिक संसार में हम अपने बच्चों से सरलता,ईमानदारी व सच्चाई की अपेक्षा करते हैं वैसा व्यवहार वह ईश्वर हमसे भी चाहता है। बच्चों की गलतियों को सुधारने के लिए हम उन्हें कई प्रकार के दण्ड देते हैं,उनकी पिटाई करते हैं या जेब खर्च बंद कर देते हैं आदि। इसी प्रकार वह परम न्यायकारी भी हमें दण्ड देता है। वह हमें मानसिक व शारीरिक कष्ट देता है, प्रियजनों से वियोग करवा देता है,हमें धन,बल व यश से वंचित कर देता है आदि।

अधर्म से कमाए हुए पैसे के कारण अहंकारी हुए मनुष्य का घमण्ड दूर करने के लिए उसे या उसके परिवारी जनों या बच्चों को बुराइयों में उलझा देता है। गलत रास्ते से कमाई गई धन-संपत्ति को बरबाद कर देता है।

वह प्रभु मनुष्य को सोचने पर विवश कर देता है कि वह इस संसार में खाली हाथ आया था और खाली हाथ ही उसे यहाँ से जाना है। इस संसार से अपने साथ केवल अपने अच्छे व बुरे कर्मों का लेखा-जोखा लेकर जाता है जो जन्म-जन्मान्तर तक उसके साथी बनते हैं। आने वाले जन्मों की सुख-समृद्धि या बदहाली का कारण बनते हैं।

समय रहते यदि मनुष्य जाग जाए तो अपने लिए मुसीबतों के पहाड़ खड़े करने के स्थान पर वह अपने लिए सुख-शांति का पुरस्कार प्राप्त कर सकता है..!!



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