Big message in a handful of pyre ashes

चिता की मुट्ठी भर राख में बहुत बड़ा संदेश

मनुष्य शरीर का चोला परमात्मा की असीम कृपा से बड़े सौभाग्य से मिलता है।
ईश्वर ने मनुष्य का शरीर भी गजब का बनाया है। प्राणों के भीतर इतनी शक्ति है कि जीते-जी इस शरीर में इतनी सम्भावनायें छोड़ी हैं कि भोगने उतर जाओ तो जानवर से भी ज्यादा भोग सकते हो।

यदि चाहो तो इस शरीर का सही उपयोग करके अभ्यास से इसके भीतर हृदय में विराजमान ईश्वर की *परम ज्योति(परम-प्रकाश) का साक्षात्कार कर लिया जायें तो इसी शरीर में पूरे ब्रह्माँड का सम्राट बनने की भी क्षमता है।

असीम सम्भावना वाली यह देह जाते-जाते, खत्म होने के बाद भी जिन्दगी को लेकर गजब के सन्देश दे जाती है।
मरने के बाद मनुष्य के शरीर को जला दिया जाता है, दफना दिया जाता है या बहा दिया जाता है। तीनों ही स्थितियों में इसकी राख, मिट्टी बड़ा सन्देश दे जाती है। चिता की मुठ्ठी भर राख में जो सन्देश है वह उसकी आग में नहीं है। पांँच-छ: फीट का शरीर कुछ मुट्ठी भर राख में बदल जाता है।
हम सभी गहराई से चिन्तन करें कि आखिर में क्या रह जायेगा? जिन्दगी भर जिस बात के लिए सारा तमाशा करते हैं, यदि उसके समापन पर नजर डाल लें तो इस प्राण के भीतर की शक्ति को पहचान कर स्वयंँ को जानने के लिए तीव्र जिज्ञासा पैदा होती है।

वो चन्द मुट्ठी भर राख, वो कब्र की जरा-सी मिट्टी बताती है कि मेरे रूप में तब्दील होने से पहले तुम्हारे पास जो था उसका सदुपयोग कर लेना। वरना यह हश्र तो होना ही है।

प्राणों के भीतर की शक्ति ही ऐसी है, जिसमें उजाला (परम-प्रकाश) और जीवन दोनों हैं।
वरना बाकी सारी आग उजाला (प्रकाश) तो देती है, लेकिन जीवन नहीं देती

इतनी बड़ी तैयारी के साथ यदि ईश्वर ने हमें मनुष्य बनाकर भेजा है तो चूकना नहीं चाहिए।

समय समय पर संतों ने भी यही समझाया कि समझदारी इसी में है कि *ध्यान-सुमिरण के अभ्यास से प्राणों के भीतर की उस अविनाशी शक्ति को पहचान कर स्वयंँ को जाना जाय और शान्ति के अनुभव से मनुष्य जीवन में आनन्द की अनुभूति की जाय!

सचमुच, स्वयं को जानना, स्वयं की आवाज को सुनना, खुद की खामियों को दूर करने का प्रयास करना – हमारे व्यक्तित्व में बदलाव तो लाता ही है – हमारे जीवन में असीम सुख की अनुभूति भी देता है! इसी में जीवन की सार्थकता भी है!



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