समय रहते अपना घर बना ले

एक निर्धन विद्वान व्यक्ति चलते चलते पड़ोसी राज्य में पहुँचा।
संयोग से उस दिन वहाँ हस्तिपटबंधन समारोह था! *जिसमें एक हाथी की सूंड में माला देकर नगर में घुमाया जाता था। वह जिसके गले में माला डाल देता था उसे 5 वर्ष के लिए वहां का राजा बना दिया जाता था।*

वह निर्धन व्यक्ति भी समारोह देखने लगा। हाथी ने उसके ही गले में माला डाल दी।
*सभी ने जयजयकार करते हुए उसे 5 वर्ष के लिए वहां का राजा घोषित कर दिया।*

राजपुरोहित ने उसका राजतिलक किया और वहाँ के नियम बताते हुए कहा कि *आपको केवल 5 वर्ष के लिए राजा बनाया जा रहा है। 5 वर्ष पूर्ण होते ही आपको मगरमच्छों व घड़ियालों से युक्त नदी में छोड़ दिया जाएगा।*

यदि आप में ताकत होगी तो आप उनका मुकाबला करके नदी के पार वाले गाँव में पहुँच सकते हो। लेकिन *आप को वापिस इस नगर में आने नहीं दिया जाएगा।*

वह निर्धन विद्वान व्यक्ति तो सिहर गया पर उसने सोचा कि *अभी तो 5 वर्ष का समय है। कोई उपाय तो निकल ही जाएगा।*

*उसने 5 वर्ष तक विद्वत्तापूर्वक राज्य किया। राज्य की संचालन प्रक्रिया को पूरे मनोयोग से निभाया और इस प्रकार केवल राज्य पर ही नहीं लोगों के दिलों पर भी राज्य करने लगा। जनता ने ऐसा प्रजावत्सल राजा कभी नहीं देखा था।*

5 वर्ष पूर्ण हुए। नियमानुसार राजा को फिर से हाथी पर बैठाकर जुलूस निकाला गया। लोगों की आँखों से आँसुओं की झड़ी लग गई। नदी के तट पर पहुँच कर राजा हाथी से उतरा। राजपुरोहित ने कहा कि *अब आप नदी पार करके दूसरी ओर जा सकते हैं।*

अश्रुपूरित विदाई समारोह के बीच उसने कहा कि *मैं इस राज्य के नियमों का सम्मान करता हूँ। अब आप मुझे आज्ञा दें।*

जैसे ही राजा ने नदी की ओर कदम बढाए! लोगों ने अपनी सजल आँखों को ऊपर उठाया तो *वहाँ नज़ारा देखकर वे लोग खुशी से नाचने लगे!*
कारण कि *राजा ने अपने इस पांच साल की अवधि में उनके द्वारा नदी पर इस पार से उस पार तक एक पुल बनवाया था और उस पर राजा शांत भाव से नदी के उस पार वाले सुंदर से गाँव की ओर चले जा रहे थे!*

इस प्रसंग से हमें यही प्रेरणा मिलती है कि *क्या ऐसा ही कुछ हमारे जीवन साथ भी तो घटित नहीं हो रहा? क्योंकि हमें भी तो बनाने वाले ने एक निश्चित समय के लिए श्वांसो की अनमोल पूंजी देकर इस अमूल्य जीवन की बागडोर सौंपी गई है।*

*नियत समय पूरा होते ही हमें यह राज्य छोड़ कर भवसागर के उस पार वाले लोक में जाना है जहां से हमें फिर से इस राज्य में आने की आज्ञा नहीं है।*

यदि हमने आत्म ज्ञान का पुल नहीं बनाया तो *हमें भी मगरमच्छों व घड़ियालों से युक्त नरकों में डाल दिए जाएगा और हम उनका ग्रास बन जाएंगे।*
अगर हम शांत भाव से भवसागर के उस पार वाले लोक में जाना चाहते हैं तो *अभी से वह आनंद रुपी पुल बनाने की शुरूआत कर देनी चाहिए क्योंकि आयु काल पूरा होने के बाद तो निश्चित ही जाना है।*

ये सुन्दर पंक्तियाँ हमारे समझने के लिय काफी है कि *हम यहाँ मुसाफिर की तरह ही हैं और जीवन का हर पल हमारे हाथ से निकल रहा है!*

तीन पहर तो बीत गये,
बस एक पहर ही बाकी है।
जीवन हाथों से फिसल गया,
बस खाली मुट्ठी बाकी है।

सब कुछ पाया इस जीवन में,
फिर भी इच्छाएं बाकी हैं
दुनिया से हमने क्या पाया,
यह लेखा – जोखा बहुत हुआ,
*इस जग ने हमसे क्या पाया,
बस ये गणनाएं बाकी हैं।*

इस भाग-दौड़ की दुनिया में
हमको इक पल का होश नहीं,
वैसे तो जीवन सुखमय है,
पर फिर भी क्यों संतोष नहीं !

क्या यूं ही जीवन बीतेगा,
क्या यूं ही सांसें बंद होंगी ?
औरों की पीड़ा देख समझ
कब अपनी आंखें नम होंगी ?
मन के अंतर में कहीं छिपे
इस प्रश्न का उत्तर बाकी है।

मेरी खुशियां, मेरे सपने
मेरे बच्चे, मेरे अपने
यह करते – करते शाम हुई
इससे पहले तम छा जाए
इससे पहले कि शाम ढले

कुछ दूर परायी बस्ती में
इक दीप जलाना बाकी है।
तीन पहर तो बीत गये,
बस एक पहर ही बाकी है।
जीवन हाथों से फिसल गया,
बस खाली मुट्ठी बाकी है।

*जीवन की सारी दौड़ केवल अतिरिक्त के लिए है! अतिरिक्त पैसा, अतिरिक्त पहचान, अतिरिक्त शोहरत, अतिरिक्त प्रतिष्ठा, यदि यह अतिरिक्त पाने की लालसा ना हो तो जीवन एकदम सरल है!*

*आइए, इस गंभीर प्रसंग पर गहराई से विचार करें!*

*🙏🏿🙏🏼🙏*सुप्रभात *🙏🏽🙏🏻🙏🏾*




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