गलत व अभोज्य वस्तुओं के खान-पान से मनुष्य विकार ग्रस्त हो जाता है।

बोल तो अमोल है जो कोई बोले जान।
हिये तराजू तौल के तव मुख बाहर आन॥
एक दिन गुरुकुल के शिष्यों में इस बात पर बहस छिड़ गयी कि आखिर इस संसार की सबसे शक्तिशाली वस्तु क्या है?
कोई कुछ कहता तो कोई कुछ! जब पारस्परिक विवाद का कोई निर्णय ना निकला तो फिर सभी शिष्य गुरुजी के पास पहुँचे!

सबसे पहले गुरूजी ने उन सभी शिष्यों की बातों को सुना और कुछ सोचने के बाद बोले- तुम सब की बुद्धि ख़राब हो गयी है! क्या ये अनाप-शनाप निरर्थक प्रश्न कर रहे हो? इतना कहकर वे वहां से चले गए।

हमेशा शांत स्वभाव रहने वाले गुरु जी से किसी ने इस प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं की थी। सभी शिष्य क्रोधित हो उठे और आपस में गुरु जी के इस व्यवहार की आलोचना करने लगे।

अभी वे आलोचना कर ही रहे थे कि तभी गुरु जी उनके समक्ष पहुंचे और बोले- *मुझे तुम सब पर गर्व है! तुम लोग अपना एक भी क्षण भी व्यर्थ नहीं करते और अवकाश के समय भी ज्ञान चर्चा किया करते हो।

गुरु जी से प्रसंशा के बोल सुनकर शिष्य गदगद हो गए! उनका स्वाभिमान जागृत हो गया और सभी के चेहरे खिल उठे।

गुरूजी ने फिर अपने उन सभी शिष्यों को समझाते हुए कहा – “मेरे प्यारे शिष्यो! आज ज़रूर आप लोगों को मेरा व्यवहार कुछ विचित्र सा लगा होगा! दरअसल, मैंने ऐसा जानबूझ आपके प्रश्न का उत्तर देने के लिए किया था।

देखिये,
जब मैंने आपके प्रश्न के बदले में आपको भला-बुरा कहा तो आप सभी क्रोधित हो उठे और मेरी आलोचना करने लगे!
लेकिन जब मैंने आपकी प्रसंशा की तो आप सब प्रसन्न हो उठे!

पुत्रो, इस संसार में वाणी से बढकर दूसरी कोई शक्तिशाली वस्तु नहीं है।
वाणी से ही मित्र को शत्रु और शत्रु को भी मित्र बनाया जा सकता है।
ऐसी शक्तिशाली वस्तु का प्रयोग प्रत्येक व्यक्ति को सोच समझ कर करना चाहिए।
वाणी का माधुर्य लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है।
गुरूजी की बातें सुनकर शिष्यगण संतुष्ट होकर गुरुदेव को प्रणाम कर लौट आए और उस दिन से मीठा बोलने का अभ्यास करने लगे।

सचमुच में, हमारी बोली या हमारी वाणी बेहद शक्तिशाली होती है! आवश्यकता है – इसका सही प्रयोग करने की।
यदि हम अपनी बोली अच्छी रखते हैं और अपनी बात बिना औरों को ठेस पहुंचाए हुए कहते हैं तो ये हमारे व्यक्तित्व को संवारता है और हमें लोगों के बीच लोकप्रिय बनाता है।
वहीं, अगर हम साधारण बात भी अपमानजनक या क्रोध के साथ कहते हैं तो ना हम ठीक से अपने विचारों को समझा पाते हैं और ना ही दूसरों के हृदय में अपने लिए कोई जगह बना पाते हैं। अतः हमें हमेशा सही शब्दों और सही लहजे का चुनाव करना चाहिए!
कहा भी है कि –
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आप खोय!
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि इंसान को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को बहुत अच्छी लगे। ऐसी भाषा दूसरे लोगों को तो सुख पहुँचाती ही है, इसके साथ खुद को भी बड़े आनंद का अनुभव होता है।

सचमुच में, वाणी की शक्ति मनुष्य के लिए वरदान व अभिशाप दोनों है। आवश्यकता है सदुपयोग एवं दुरुपयोग की। निंदा, प्रशंसा, आलोचना के शब्दों को सुन-सुनकर मनुष्य का हृदय इधर-उधर डोलता है। वाणियां ही मनुष्य के मन में काम, क्रोध, लोभ, मोह के विकार उत्पन्न करते हैं। वाणी सुनकर ही राजा धन, ऐश्वर्य व राजपाट छोड़कर वैरागी बन जाता है। उपदेश सुनकर ही मनुष्य विवेक द्वारा इस संसार की नि:सारता को समझता है।

गलत व अभोज्य वस्तुओं के खान-पान से मनुष्य विकार ग्रस्त हो जाता है। उसी प्रकर गलत वाणियां बोलकर मनुष्य स्वयं व दूसरों को अशांत करता है। कई लोग बातें ज्यादा काम कम करते हैं तो कई लोग बातें कम तथा काम ज्यादा करते हैं!
कबीर साहेब कहते हैं – मधुर वचन है औषधि कटुक वचन है तीर।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 सुप्रभात 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏




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