धरती की धीमी हो रही रफ्तार से लंबे होंगे दिन
जलवायु परिवर्तन के कारण पिघलने वाले बर्फ से बदलाव खतरे में धरती वाशिंगटन, एजेंसी। पृथ्वी के आंतरिक कोर की गति ग्रह की सतह की तुलना में धीमी हो रही है। इसके पीछे की वजह जलवायु परिवर्तन के कारण ध्रुव पर पिघल रही बर्फ है। अध्ययन से पता चला है कि आंतरिक कोर की गति में कमी एक दशक पहले 2010 में शुरू हुई थी। वैज्ञानिकों द्वारा इसे मापने की क्षमता विकसित करने के बाद से ऐसा पहली बार हुआ है। पृथ्वी का आंतरिक कोर:
वैज्ञानिकों के मुताबिक धरती की • आंतरिक फोर ठोस है जो लोहे और निकल से बनी है। यह हमारे ग्रह का सबसे गर्म और चना हिस्सा है, जहां का तापमान 5500 डिग्री सेल्सियस रहता है। आंतरिक कोर लगभग चंद्रमा के आकार की है और हमारे पैरों के नीचे करीब 3000 मील से अधिक दूरी पर त है। यह बदलाव पूरी पृथ्वी के घूर्णन यानी चक्कर में फेरबदल करेगा। इससे हमारे दिन की लंबाई बढ़ जाएगी। हालिया अध्ययन में इसकी पुष्टि हुई है। वैज्ञानिकों के अनुरसर, धरती अपनी धुरी पर करीब 1000 मील प्रति घंटे
पृथ्वी की धुरी पर असर
दुनिया में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं जिसका असर पृथ्वी की चूरी पर हो रहा है। ज्यूरिख यूनिवर्सिटी के जलवायु वैज्ञानिक विन्सेंट हमठे ने बताया था कि पृथ्वी के ऊपरी हिस्से से वजन हटा कर दूसरी और कर दिया जाए तो पूर्णन में बदलाव स्वभाविक है। पृथ्वी पर मौजूद द्रव्यमान के वितरण में बदलाव का असर बुरी पर हो रहा है।
की रफ्तार से घूमती है। धरती को एक चक्कर पूरा करने में 23 घंटे 56 मिनट और 4.1 सेकंड का समय लगता है। इससे ही धरती के एक हिस्से में दिन और दूसरे में रात होती है। धरती अपनी धुरी पर घूमती रहती है, लेकिन इसका एहसास नहीं होता है। हमें भूकंपीय गतिविधियों से पता चला
■ आंतरिक कोर का घूर्णन
सतह की तुलना में धीमा 2010 से ही शुरू हो
■ गया धुरी पर असर
स्तब्ध रह गए शोधकर्ता
दक्षिण कैलिफोर्निया के शोधकर्ताओं ने इस विषय पर अध्ययन किया जो साइंस जर्नल नेवर में प्रकाशित हुई। आध्ययन में शोधकर्ताओं ने यह दावा किया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्वी की आंतरिक कोर पीछे की ओर जा रही है। यूएससी डोर्नसाइफ कॉलेज ऑफ लेटर्स, आट्र्स एंड साइंसेज में अर्थ साइस के डीन प्रोफेसर जॉन विहेल ने कहा, ‘जब मैंने पहली बार इस बदलाव का संकेत देने वाले सिरमौग्राम देखे, तो मैं स्तब्ध रह गया।’ अगर यही ट्रेंड बना रहा तो अंततः पूरे ग्रह के घूर्णन को बदल सकता है. जिससे दिन बढ़ सकते हैं।’
वैज्ञानिकों ने 1991 से 2023 के बीच साउथ सैंडविच आइलैंड, सोवियत, फ्रेंच और अमेरिकी नाभिकीय परीक्षणों और लगातार आ रहे 121 भूकंपीय गतिविधि के आंकड़ों का विश्लेषण किया। शोधकर्ता भूकंप की तरंगों का उपयोग करके इसका म अध्ययन कर सकते हैं।
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