भगवान की कृपा

भगवान की कृपा

भगवत कृपा तो निरंतर बह रही है परंतु उसको पाने का पात्र बनने के लिए समर्पण आवश्यक होता है।
परमात्मा के प्रति समर्पण दृढ़ निश्चय और अनुशासन का प्रतीक है। इस से मनुष्य स्वत: ही भगवत कृपा का पात्र बन जाता है।
कहा भी है –
सोई सेवक प्रीतम मम सोई, मम अनुशासन माने जोई!

महाभारत में एक घटना सुनाई जाती है कि जब युद्ध के पश्चात शिविर वापस पहुंचने पर श्री कृष्ण रथ से उतरे और अपने पैर के अंगूठे को रथ पर टिका कर अर्जुन को आदेश दिया कि तत्काल रथ से उतर कर दूर खड़े हो जाओ।
लेकिन अर्जुन कुछ समझे नहीं और श्री कृष्ण की आज्ञा मानते हुए वे तत्काल उतरे और दूर जाकर खड़े हो गए।
ज्योंही श्रीकृष्ण ने अपना पांव रथ से नीचे रखा, रथ धूं धूं कर जलने लगा और कुछ ही समय में आग में तब्दील हो गया।

तब आश्चर्यवत् अर्जुन ने भगवान से इसका कारण पूछा।

श्री कृष्ण बोले युद्ध में तुम्हारे ऊपर जिन दिव्य शस्त्रों का प्रयोग हुआ था, उनके तेज से यह रथ तो कभी का जल चुका था।
मैंने अपनी शक्ति से इस को बचाए रखा था। यदि तुम तत्काल ना उतरते तो रथ के साथ तुम भी भस्म हो जाते।
तुम्हारे समर्पण ने ही तुम्हारे प्राणों की रक्षा की है।

समर्पण – स्वयं को विनम्र और गहरा बनाकर ईश्वर की कृपा का पात्र होने की प्रक्रिया है।

सुप्रभात 🙏


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