ईमानदार  बालक

एक छोटे से गांव में नंदू नाम का एक बालक अपने निर्धन माता पिता के साथ रहता था।

एक दिन दो भाई अपनी फसल शहर में बेचकर ट्रैक्टर से अपने गांव आ रहे थे।

फसल बेचकर जो पैसा मिला वो उन्होंने एक थैली💰 में रख लिया था। अचानक एक गड्डा आ गया और ट्रैक्टर उछला और थैली नीचे गिर गई ।

जिसे दोनों भाई देख नहीं पाएं और सीधे चले गए।

उधर बालक नंदू खेलकूद पर रात के अंधेरे में अपने घर जा रहा था।

अचानक उसका पैर किसी वस्तु से टकरा गया। देखा तो पता चला कि किसी की थैली है। जब नंदू ने उसे खोलकर देखा तो थैली में नोट भरे हुए थे।

वो हैरान हो गया। वह सोचने लगा की पता नहीं किसकी थैली है। उसने सोचा कि अगर यही छोड़ गया तो कोई और इसे उठा ले जाएगा

वो मन ही मन सोचने लगा ‘जिसकी यह थैली है उसे कितना अधिक दुख और कष्ट हो रहा होगा।

हालाँकि लड़का उम्र से छोटा था और निर्धन माँ बाप का बेटा था। लेकिन उसमे सूझबूझ काफी अच्छी थी।

वह थैली को उठाकर अपने घर ले आया। उसने थैली को झोपड़ी में छुपा कर रख दिया।
फिर वापस आकर उसी रास्ते पर खड़ा हो गया उसने सोचा।
कोई ढूंढता हुआ आएगा तो पहचान बताने पर में थैली उसे दे दूंगा।

इधर जब थोड़ी देर बाद दोनों भाई घर पहुंचे तो ट्रैक्टर में थैली नहीं थी । दोनों भाई यह जान निराश होते हुए बहुत दुखी होने लगे।

पूरे साल की कमाई थैली में भरी थी।

उन्होंने विचार किया किसी को मिला भी होगा तो कोई बताएगा भी नहीं।

शायद अभी वह किसी के हाथ ना लगा हो यह सोच दोनों भाई टॉर्च लेकर उसी रास्ते पर वापस र चले जा रहे थे।

छोटा बालक नंदू उन्हें रास्ते में मिला। उसने उन दोनों से कुछ भी नहीं पूछा। लेकिन उसे शंका हुई की शायद वह थैली इन्हीं की हो।

तब उसने उनसे पुछा ‘आप लोग क्या ढूंढ रहे हैं? उन्होंने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया।

उसने दोबरा पूछा ‘आप दोनों क्या ढूढ़ रहै हो। उन्होंने कहा? अरे कुछ भी ढूंढ रहे हैं तू जा तुझे क्या मतलब।

दोनों आगे बढ़ते जा रहे थे। नंदू उनके पीछे चलने लगा। वो समझ गया था कि नोटों वाली थैली संभवत इन्हीं की ही है।

उसने तीसरी बार फिर पूछा, तो चिल्लाकर एक भाई ने कहा ‘अरे चुप हो जा और हमें अपना काम करने दे। दिमाग को और खराब ना कर।

अब नंदू को पूरा विश्वास हो गया कि वो थैली अवश्य ही इन्हीं की ही है।

फिर उसने पूछा ‘आपकी थैली 💰खो गई है क्या ?

दोनों भाई एकदम रुक गए और बोले हां। नंदू बोला ‘पहले थैली की पहचान बताइए।

जब उन्होंने पहचान बताई तो बालक उन्हें अपने घर ले गया। छुपाई हुई थैली लाकर उन दोनों भाइयों को सौंप दी।

दोनों भाइयों के प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं था। नंदू की इमानदारी पर दोनों बड़े हैरान थे।
उन्होंने इनाम के तौर पर कुछ रुपए देने चाहे, पर नंदू ने मना कर दिया बोला ‘यह तो मेरा कर्तव्य था।

दूसरे के दिन वह दोनों भाई नंदू के स्कूल पहुंच गए।

उन्होंने बालक के अध्यापक को यह पूरी घटना सुनाते हुए कहा, हम सब विद्यार्थियों के सामने उस बालक को धन्यवाद देने आए।

अध्यापक के नेत्रों से आंसू झरने लगे। उन्होंने बालक की पीठ थपथपाई और पूछा ‘बेटा, पैसे से भरे थैले के बारे में अपने माता पिता को क्यों नहीं बताया ?

नंदू बोला, गुरूजी मेरे माता-पिता निर्धन हैं ।

कदाचित उनका मन बदल जाता तो हो सकता है रुपयों को देख कर उसे लौटने नहीं देते और यह दोंनो भाई बहुत निराश हो जाते।

यह सोच मैंने घरवालों को थैली के बारे में कुछ भी नहीं बताया। सभी ने नंदू की बड़ी प्रशंसा की और कहा बेटा धन्यवाद तूने गरीब होकर भी ईमानदारी को नहीं छोड़ा।

शिक्षा:-इस कहानी का सार यही है कि सबसे बड़ा गुण इमानदारी का है। ईमानदार होना हमें सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति की स्थिति में ले जाता है।

जिस प्रकार इस छोटे से बालक ने अपने ईमान को नहीं खोया भले ही उसकी गरीबी कष्टदाई थी।

लेकिन ईमानदार व्यक्ति छोटा हो या बड़ा ईमानदारी का गुण ही जीवन के सबसे बड़े गहने हैं।

ईमानदारी से ही हमारे व्यक्तित्व को बहुत प्रसिद्धि मिलती है। ईमानदार मनुष्य ईश्वर की सर्वोत्तम रचना है।

सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।

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