गुरु कृपा का वर्णन करना इतना आसान नहीं तो भी कुछ महीने पहले मैंने अपने भावों को शब्दों में पिरोया था – जिसको सभी ने पसन्द किया और आज हर ग्रुप में यह पोस्ट हो रहा है! मैं खुद पुनः इसे पोस्ट कर रहा हूँ!
गुरु-कृपा क्या है?
पैसा, आलीशान घर, महंगी गाड़ियां और धन-दौलत गुरु-कृपा नहीं है।
इस जीवन में अनेक संकट और विपदाएं जो हमारी जानकारी के बिना ही गायब हो जाती हैं,
वह गुरु-कृपा है।
कभी-कभी सफ़र के दौरान भीड़ वाली जगह में धक्का-मुक्की के बावजूद हम किसी तरह से गिरते-गिरते बच जाते हैं और संतुलन बना लेते हैं। वह संतुलन जिसने हमें गिरने से बचाया,
वह गुरु-कृपा है।
जब कभी एक समय का भोजन भी मिलना मुश्किल हो, फिर भी हमें पेट भर खाने को मिले,
वह गुरु-कृपा है।
जब आप अनेक मुश्किलों के बोझ तले दबे हों, फिर भी आप इनका सामना करने का सामर्थ्य महसूस करें,
वह सामर्थ्य गुरु-कृपा है।
जब आप बिल्कुल हार मानने ही वाले हों और ये सोच लें कि अब सब कुछ ख़त्म हो चुका है। तभी, उसी क्षण, आपको आशा की एक किरण दिखाई देने लगे और आप फिर से संघर्ष के लिए तैयार हो जाएं,
वह आशा गुरु-कृपा है।
जब विपत्ति के समय आपके सभी सगे-संबंधी आपको अकेला छोड़ दें, एक गुरु-बंधु (कोई मित्र या गुरु को मानने वाला भाई-बहन) आए और आपसे कहे- “तुम आगे बढ़ो, हम तुम्हारे साथ हैं।”,
उस गुरु-बंधु के हिम्मत देने वाले शब्द गुरु-कृपा है।
जब आप कामयाबी के शिखर पर हों, पैसा और ख़ुशियां भरपूर हों, उस वक़्त भी आप स्वयं को ज़मीन से जुड़ा और विनम्र महसूस करें,
वह गुरु-कृपा है।
केवल धन, ऐश्वर्य और सफलता का होना ही गुरु-कृपा नहीं हैं, लेकिन जब आपके पास ये चीज़ें न हों, फिर भी आप ख़ुशी, संतुष्टि और स्वयं को धन्य महसूस करें,
वह गुरु-कृपा है।
आप हैं और आपके जीवनकाल में ही आपके मार्गदर्शन के लिय समय के सद्गुरु हों, उनका दिव्य ज्ञान हो, आपके ह्रदय में स्वयं अपने लिये सेवा, सत्संग और अभ्यास के अवसर तलाशने की प्रबल आकांशा हो,
वह गुरु-कृपा है।
गुरु द्वारा प्र्द्दत्त ज्ञान का प्रतिदिन अभ्यास करने तथा वह आनन्द और लोग भी महसूस करें – यह भाव प्रतिपल बना रहे!
वह गुरु-कृपा है।
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