कर्म और ज्ञान

कर्म और ज्ञान

एक बार एक जंगल में आग लग गई! उसमें दो व्यक्ति फँस गए थे!
उनमें से एक अँधा तथा दूसरा लंगड़ा था! दोनों बहुत डर गए थे। अंधे ने आव देखा न ताव बस दौड़ना शुरू कर दिया!
अंधे को यह भी ख्याल नहीं रहा कि वो आग की तरफ दौड़ रहा था! लंगड़ा उसे आवाज़ देता रहा पर अंधे ने पलटकर जवाब नहीं दिया।
लंगड़ा आग को अपनी तरफ आती तो देख रहा था पर वह भाग नहीं सकता था।
अंत में दोनों आग में जलकर मर गए।

अंधे ने भागने का कर्म किया था पर उसे ज्ञान नहीं था की किस तरफ भागना है।
लंगड़े को ज्ञान था कि किस तरफ भागना है पर वो भागने का कर्म नहीं कर सकता था।

अगर दोनों एक साथ रहते और अँधा, लंगड़े को अपने कंधे पर बिठा कर भागता तो दोनों की जान बच सकती थी।

इस प्रसंग से यही अर्थ निकलता है कि कर्म के बिना ज्ञान व्यर्थ है और ज्ञान के बिना कर्म व्यर्थ है!

यदि कोई अपने को ज्ञानी समझता हो तो उसे सतत्त ज्ञान का अभ्यास करना होगा अन्यथा ज्ञान होने के बाद भी खतरा निश्चित है!




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