भाव” “अभाव” और “प्रभाव

“भाव” “अभाव” और “प्रभाव” 💗

महाभारत का युद्ध रोकने के अंतिम प्रयास हेतु स्वयं श्री कृष्ण शांति प्रस्ताव लेकर हस्तीनापुर पहुंचे! कुटिल शकुनी ने कृष्ण को भोजन पर आमंत्रित करने की योजना बनाई! स्वयं दुर्योधन ने उनको निमंत्रण दिया!
कृष्ण तो फिर कृष्ण हैं! उन्होंने निमंत्रण अस्वीकार कर दिया और जा पहुँचे विदुर के घर! विदुरानी कृष्ण पर अपार स्नेह रखती थी!अचानक कृष्ण को देख भावुक हो गई। कृष्ण ने जब कहा क़ि, भूख लगी है! तो तुरंत केले ले आई और भाव विह्वलता से बेसुध होकर केले फैंक देती और छिलका खिला देती।

माधव भी बिना कुछ कहे प्रेम से छिलकों को खाते रहे! बात फैली! दुर्योधन जो कृष्ण से बैर भाव रखता था ताना मारके बोला, “केशव मैंने तो छप्पन भोग बनवाये थे पर आपको तो छिलके ही पंसद आये!”

माधव मुस्करा के बोले, दुर्योधन, कोई किसी का आमंत्रण तीन वजहों से स्वीकार करता है – *पहला *भाव में, दूसरा अभाव में और तीसरा प्रभाव में!*

भाव तुझमें है नहीं, अभाव मुझे है नहीं और प्रभाव तेरा मै मानता नहीं।अब तू ही बता कि मैं कैसे तुम्हारा निमंत्रण स्वीकार करता?

मैं वहीं गया जहाँ मुझे जाना चाहिये था। मैं भोजन का नहीं भाव का भूखा हूं और हमेशा रहूंगा!

भाव का भूखा हूँ मैं और भाव ही एक सार है!….




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