परमात्मा को पाने के लिए खुद को समर्पित करो!

परमात्मा को पाने के लिए खुद को समर्पित करो!

एक गाँव में यज्ञ हो रहा था और गाँव का राजा एक बकरे की बलि चढ़ा रहा था।

भगवान बुद्ध गाँव से गुज़र रहे थे तो वो वहाँ पहुँच गए और उन्होंने उस राजा को कहा कि, “ये क्या कर रहे हो? इस बकरे को किसलिए चढ़ा रहे हो?”

तो राजा ने कहा कि, “इसके चढ़ाने से बड़ा पुण्य होता है।”

तब बुद्ध ने कहा, “मुझे चढ़ा दो, तो और भी ज़्यादा पुण्य होगा।”

राजा थोड़ा डरा और विचारशुन्य होकर मन ही मन सोचने लगा कि बकरे को चढ़ाने में कोई हर्ज़ा नहीं है लेकिन बुद्ध को चढ़ाना! उसके भी हाथ-पैर कांपने लगे!

भगवान बुद्ध ने कहा कि, “अगर सच में ही कोई लाभ करना हो तो अपने आप को चढ़ा दो। बकरा चढ़ाने से क्या होगा?”

उस राजा ने कहा, “इस बकरे का कोई नुकसान नहीं है, स्वर्ग चला जाएगा।”

बुद्ध ने कहा, “ये बहुत ही अच्छा है, मैं स्वर्ग की ही तलाश कर रहा हूँ, तुम मुझे चढ़ा दो। तुम मुझे स्वर्ग भेज दो और तुम अपने माता-पिता को क्यों नहीं भेजते स्वर्ग और ख़ुद को क्यों रोके हुए हो?

जब तुमको स्वर्ग जाने की ऐसी सरल और सुगम तरकीब मिल ही गई है तो काट लो गर्दन।
बकरे को बेचारे को क्यों भेज रहे हो? जो शायद जाना भी न चाहता हो स्वर्ग!

बकरे को ख़ुद ही चुनने दो कि कहाँ उसे जाना है।”

राजा को बात समझ में आयी क्योंकि भगवान बुद्ध ने सहजता से कटु सत्य कहा था!

उन्होंने आगे कहा कि तुमने परमात्मा को सब चढ़ाया है- धन चढ़ाया, फूल चढ़ाए। जबकि फूल भी तुम्हारे नहीं… वो भी परमात्मा के हैं! वृक्षों पर पहले से चढ़े ही हुए थे।

उन फूलों का वृक्षों पर सजीव रूप में खिलना, सुगंध देना क्या परमात्मा के चरणों में चढ़ना नहीं था?

वृक्षों के ऊपर से उनकी परमात्मा की यात्रा हो ही रही थी। वहीं तो जा रही थी वह सुगन्ध और कहाँ जाती?

तुमने उनको वृक्षों से तोड़ के उन फूलों को मुर्दाकर लिया और फिर मुर्दा फूलों को जाकर मन्दिर में चढ़ा आए और समझने लगे कि बड़ा काम कर आए हो!

कभी धूप-दीप जलाए तो कभी जानवर चढ़ाए तो कभी आदमी भी चढ़ा दिए!

अपने को कब चढ़ाओगे?

और सत्य यही है कि जो अपने को चढ़ाता है, खुद को पूर्ण रूप से समर्पित करता है – वही उस परमात्मा को पाता है।

इसलिए, अगर जीते जी स्वर्ग का अनुभव करना चाहते हो, भगवान के लिए कुछ करना चाहते हो, उनको प्रसन्न करना चाहते हो तो *खुद को ही भेंट स्वरूप चढ़ाओ – तभी उनसे भेट होगी! खुद को समर्पित किये बिना कुछ भी नहीं हो सकता!
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