जितनी अधिक इच्छा, उतनी ही अधिक मन में अशान्ति….

जितनी अधिक इच्छा, उतनी ही अधिक मन में अशान्ति….

हमेशा याद रहे,
चाहे कितना भी धन इकट्ठा कमा करके रख लो, दरिद्रता नहीं मिटती और चाहे कितने ही बड़े पदों पर पहुंँच जाओ, हीन भाव नष्ट नहीं होता।
इसलिए कि दरिद्रता भीतर है और धन बाहर है। हीन भाव भीतर है और पद बाहर है। दोनों का कोई सम्बन्ध नहीं है।
इसलिए तो यह होता है कि एक पद मिले तो उससे बड़े पद की आकांँक्षा पैदा हो जाती है। वह पद मिल जायें तो और बड़े पद की आकांँक्षा पैदा हो जाती है।
यह ऊपर पहुंँच जाने की कोशिश इस बात का सबूत है कि मनुष्य को यह बोध है कि वह बहुत हीन है, उसे सिद्ध करना है कि वह शक्तिशाली है।

इतिहास गवाह है कि दुनिया में जिन लोगों में हीनता की भावना सर्वाधिक होती है, वे लोग मानवता को भी कुचलने में गुरेज नहीं करते। हिटलर, स्टालिन, मुसोलिनी जैसे लोग बहुत हीनता के भाव से पीड़ित थे। सिकन्दर या चंँगेज खांँ, तैमूरलंँग जैसे लोग बहुत हीनता के भाव से पीड़ित लोग थे। इन्हें तब तक चैन न था जब तक उन्होंने यह न दिखा दिया कि लाखों लोग हमारे कब्जे में हैं, उनकी गर्दन पर हमारे हाथ हैं। हम जब चाहें उनकी गर्दन मरोड़ दें।
जब तक उन्हें विश्वास न आ गया कि हम शक्तिशाली हैं तब तक वे भागते गये!
और यह विश्वास कभी नहीं आता आखिरी स्वांँस तक नहीं आता। चाहे सारी दुनिया पर कब्जा हो जाये लेकिन फिर भी ऐसे अभिमानी हीन-बुद्धि व्यक्ति के भीतर डर बना रहता है।
ऐसा व्यक्ति अभिमान से जितना शक्तिशाली होता है, उतनी ही निर्बलता उसको पकड़ने लगती है, उतनी ही उसे अपनी सुरक्षा की व्यवस्था करनी होती है।
लेकिन इतनी भारी भरकम सुरक्षा व्यवस्था होने के बावजूद भी ऐसा व्यक्ति मौत को नहीं जीत सकता क्योंकि ऐसा व्यक्ति प्राणों के भीतर की शक्ति के पूर्ण सत्य से दूर रहता है।
जीवन में समय के महापुरुष के द्वारा मिले ज्ञान के ध्यान -सुमिरण के अभ्यास के प्रति प्रतिबद्धता ही प्राणों के भीतर की शक्ति की पहचान करवाते हुए मृत्यु के पार ले जाती है और अहंँकार जड़ से नष्ट हो जाता है।
तभी व्यक्ति मानवता के प्रति सम्पूर्ण समर्पण करता है। अगर प्रत्येक व्यक्ति”नाम-सुमिरण”के अभ्यास से स्वयं को जानकर हृदय में शान्ति का अनुभव कर ले तो सम्पूर्ण विश्व में शान्ति सम्भव है।

  • श्री हंस जी महाराज
    🙏🙏🌸🌸🙏🙏



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