The one who has assumed the body has to experience both happiness and sorrow.

जिसने शरीर धारण किया है उसे सुख-दु:ख दोनों का ही अनुभव करना होगा।

शरीर धारियों को केवल सुख ही सुख या केवल दु:ख कभी प्राप्त नहीं हो सकता!

जब यही बात है कि शरीर धारण करने पर सुख-दु:ख दोनों का ही भोग करना है तो फिर दु:ख में अधिक उद्विग्न क्यों हुआ जाय?
दुख-सु:ख तो शरीर के साथ लगे ही रहते हैं! हम धैर्य धारण करके उनकी प्रगति को ही क्यों न देखते रहें!
जिन्होंने इस रहस्य को समझ कर धैर्य का आश्रय ग्रहण किया है, संसार में वही सुखी समझे जाते हैं।
क्योंकि जब समय के महापुरुष का सानिध्य मिलता है और वह आत्म ज्ञान का बोध कराते हैं !

तो वह यह भी समझाते हैं कि सुखी होने के लिय दुःख के जाने का इंतजार नहीं करना पड़ेगा बल्कि दुःखी अवस्था में भी सुख का अनुभव किया जा सकता है!
जैसे गीता में कृष्ण जी ने अर्जुन को समझाया था कि -हे अर्जुन, तू युद्ध भी कर और सुमिरन भी कर!



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